SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम शतक : उद्देशक-७] [१२३ [३ प्र.] भगवन् ! नारकों में से उद्वर्तमान-निकलता हुआ नारक जीव क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके निकलता (उद्वर्तन करता) है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न करना चाहिए। [३ उ.] गौतम! जैसे उत्पन्न होते हुए नैरयिक आदि के विषय में कहा था वैसे ही उद्वर्तमान नैरयिक आदि के (चौबीस ही दण्डकों के) विषय में दण्डक कहना चाहिए। ४.[१] नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो उव्वट्टमाणे किं देसेणं देसं आहारेति ? तहेव जाव (सु. २[१]), सव्वेण वा देसं आहारेति, सव्वेण वा सव्वं आहारेति। [२] एवं जाव वेमाणिए।४। [४-१ प्र.] भगवन्! नैरयिकों से उद्वर्तमान नैरयिक क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए। [४-१ उ.] गौतम! यह भी पूर्वसूत्र (२-१) के समान जानना चाहिए; यावत् सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, अथवा सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके आहार करता [४-२] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक जानना चाहिए। ५.[१] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववन्ने किं देसेणं देसं उववन्ने ? एसो वि तहेव जाव सव्वेणं सव्वं उववन्ने। [२] जहा उववज्जमाणे उव्वट्टमाणे य चत्तारि दंडगा तहा उववन्नेणं उव्वट्टेण वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा। सव्वेणं सव्वं उववन्ने सव्वेण वा देसं आहारेति, सव्वेण वा सव्वं आहारेति, एएणं अभिलावेणं उववन्ने वि, उव्वट्टे वि नेयव्वं । ८। [५-१ प्र.] भगवन्! नारकों में उत्पन्न हुआ नैरयिक क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न हुआ है इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए। [५-१ उ.] गौतम! यह दण्डक भी उसी प्रकार जानना, यावत् सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है। _ [५-२] जैसे उत्पद्यमान और उद्वर्तमान के विषय में चार दण्डक कहे, वैसे ही उत्पन्न और उद्वृत्त के विषय में भी चार दण्डक कहने चाहिए। यथा-सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न' तथा सर्वभाग से एक भाग को आश्रित करके आहार, या सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके आहार; इन शब्दों द्वारा उत्पन्न और उवृत्त के विषय में भी समझ लेना चाहिए।) ६.नेरइएणं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे किं अद्धणं अद्धं उववज्जति १? अरेणं सव्वं उववज्जति २? सव्वेणं अद्धं उववज्जइ ३? सव्वेणं सव्वं उववज्जति ४ ? जहा पढमिल्लेणं अट्ठ दंडगा तहा अद्धेण वि अट्ठ दंडगा भाणितव्वा। नवरं जहिं देसेणं देसं उववज्जति तहिं अद्धेणं अद्धं उववज्जावेयव्वं, एयं णाणत्तं । एते सव्वे वि सोलस दंडगा
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy