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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-६] [११५ भगवं ! तं कुक्कुडीतो। साणं कुक्कुडी कतो? भंते ! अंडगातो। एवामेव रोहा ! से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुटिव पेते, पच्छा पेते, दो वेते सासता भावा, अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! [१६ प्र.] भगवान्! पहले अण्डा और फिर मुर्गी है ? या पहले मुर्गी और फिर अण्डा है ? [१६ उ.] (भगवान्-) हे रोह! वह अण्डा कहाँ से आया ? (रोह-) भगवन्! वह मुर्गी से आया। (भगवान्-) वह मुर्गी कहाँ से आई ? (रोह-) भगवन्! वह अण्डे से हुई। (भगवान्-) इसी प्रकार हे रोह! मुर्गी और अण्डा पहले भी है, और पीछे भी है। ये दोनों शाश्वतभाव हैं। हे रोह ! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है। १७. पुट्वि भंते! लोयंते ? पच्छा अलोयंते ? पुव्वं अलोअंते ? पच्छा लोअंते ? रोहा ! लोअंते य अलोअंते य जाव' अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! [१७ प्र.] भगवन्! पहले लोकान्त और फिर अलोकान्त है ? अथवा पहले अलोकान्त और फिर लोकान्त है ? [१७ उ.] रोह! लोकान्त और अलोकान्त, इन दोनों में यावत् कोई क्रम नहीं है। १८. पुव्वि भंते ! लोअंते ? पच्छा सत्तमे ओवासंतरे ? पुच्छा । रोहा! लोअंते य सत्तमे य ओवासंतरे पुव्वि पेते जाव अणाणुपुव्वी एसा रोहा। [१८ प्र.] भगवन् ! पहले लोकान्त है और फिर सातवाँ अवकाशान्तर है ? अथवा पहले सातवाँ अवकाशान्तर है और पीछे लोकान्त है ? [१८ उ.] हे रोह ! लोकान्त और सप्तम अवकाशान्तर, ये दोनों पहले भी हैं और पीछे भी हैं। इस प्रकार यावत्-हे रोह! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है। १९. एवं लोअंते य सत्तमे य तणुवाते। एवं घणवाते, घणोदही, सत्तमा पुढवी । _ [१९] इसी प्रकार लोकान्त और सप्तम तनुवात, इसी प्रकार घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी के लिए समझना चाहिए। २०.एवं लोअंते एक्केक्केणं संजोएतव्वे इमेहिं ठाणेहि, तं जहा १. 'जाव' पद से सू. १६ में अंकित 'पुट्विं पेते' से लेकर अणाणुपुव्वी एसा रोहा' तक का पाठ समझ लेना चाहिए।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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