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________________ प्रथम शतक : उद्देशक- ६ ] [ १११ किनारा वस्त्र के किनारे को और वस्त्र का किनारा छेद के किनारे को स्पर्श करता है ? और क्या छाया का अन्त आतप (धूप) के अन्त को और आतप का अन्त छाया के अन्त को स्पर्श करता है ? [६-२ उ.] हाँ, गौतम ! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं को स्पर्श करता है । विवेचन - लोकान्त- अलोकान्तादिस्पर्श-प्ररूपणा - प्रस्तुत दो सूत्रों में लोकान्त और अलोकान्त, द्वीपान्त और सागरान्त, जलान्त और पोतान्त, छेदान्त और वस्त्रान्त तथा छायान्त और आतपान्त के (छहों दिशाओं से स्पृष्ट) स्पर्श का निरूपण किया गया है। लोकान्त अलोकान्त से और अलोकान्त लोकान्त से छहों दिशाओं में स्पृष्ट है । उसी प्रकार सागरान्त द्वीपान्त को परस्पर स्पर्श करता है । उसे लोक- अलोक – जहाँ धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय को पूर्णज्ञानियों ने विद्यमान देखा, 'लोक' संज्ञा दी, और जहाँ केवल आकाश देखा उस भाग को अलोक संज्ञा दी। चौबीस दण्डकों में अठारह पापस्थान-क्रिया स्पर्श प्ररूपणा - है ? ७. [ १ ] अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणातिवातेणं किरिया कज्जति ? हंता, अत्थि । [७-२ उ.] गौतम! यावत् व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पांच दिशाओं को स्पर्श करती है । १. [७-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? [७-१ उ.] हाँ, गौतम ! की जाती है। [ २ ] सा भंते! किं पुट्ठा कज्जति ? अपुट्ठा कज्जति ? जाव निव्वाघातेणं छद्दिसिं, वाघातं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं । [७-२ प्र.] भगवन्! की जाने वाली वह प्राणातिपातक्रिया क्या स्पृष्ट है, या अस्पृष्ट है ? [ ३ ] सा भंते! किं कडा कज्जति ? अकडा कज्जति ? गोयमा! कडा कज्जति, नो अकडा कज्जति । [७-३ प्र.] भगवन्! की जाने वाली क्या वह (प्राणातिपात) क्रिया 'कृत' है अथवा अकृत ? [७-३ उ.] गौतम ! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं । - [ ४ ] सा भंते! किं अत्तकडा कज्जति ? परकडा कज्जति ? तदुभयकडा कज्जति ? गोयमा! अत्तकडा कज्जति, णो परकडा कज्जति, णो तदुभयकडा कज्जति । [७-४ प्र.] भगवन् ! की जाने वाली यह क्रिया क्या आत्मकृत है, परकृत है, अथवा उभयकृत [७-४ उ.] गौतम ! वह क्रिया आत्मकृत है, किन्तु परकृत या उभयकृत नहीं । भगवतीसूत्र अ., वृत्ति, पत्रांक ७८-७९
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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