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प्रथम शतक : उद्देशक - ५]
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तीनों दृष्टियों वाले नारकों में क्रोधोपयुक्तादि भंग - सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में पूर्ववत् २७ भंग होते हैं, किन्तु मिश्रदृष्टि में ८० भंग होते हैं, क्योंकि मिश्रदृष्टि जीव अल्प हैं, उनका सद्भाव काल की अपेक्षा से भी अल्प है। अर्थात् - वे कभी नरक में पाये जाते हैं, कभी नहीं भी पाये जाते । इसी कारण मिश्र दृष्टि नारक में क्रोधादि के ८० भंग पाये जाते हैं ।
तीन ज्ञान और तीन अज्ञान वाले नारक कौन और कैसे ? - जो जीव नरक में सम्यक्त्व सहित उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल के प्रथम समय से लेकर भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है, इसलिए उनमें नियम (निश्चितरूप) से तीन ज्ञान होते हैं। जो मिथ्यादृष्टि जीव नरक में उत्पन्न होते हैं, वे यहाँ से संज्ञी या असंज्ञी जीवों में से गए हुए होते हैं। उनमें से जो जीव यहाँ से संज्ञी जीवों में से जाकर नरक में उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल से ही विभंग (विपरीत अवधि) ज्ञान होता है। इसलिए उनमें नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। जो जीव यहाँ से असंज्ञी जीवों में से जाकर नरक में उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल
दो अज्ञान (मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान) होते हैं, और एक अन्तर्मुहूर्त व्यतीत हो जाने पर पर्याप्त अवस्था प्राप्त होने पर विभगज्ञान उत्पन्न होता है, तब उन्हें तीन अज्ञान हो जाते हैं। इसलिए उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से कहे गये हैं । अर्थात् – किसी समय उनमें दो अज्ञान होते हैं, किसी समय तीन अज्ञान । जब दो अज्ञान होते हैं, तब उनमें क्रोधोपयुक्त आदि ८० भंग होते हैं, क्योंकि ये जीव थोड़ेसे होते हैं ।
ज्ञान और अज्ञान - ज्ञान का अर्थ यहाँ सम्यग्दर्शनपूर्वक सम्यग्ज्ञान समझना चाहिए और अज्ञान का अर्थ ज्ञानाभाव नहीं, अपितु मिथ्याज्ञान, जो कि मिथ्यादर्शनपूर्वक होता है, समझना चाहिए । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन सम्यग्ज्ञान हैं और मत्यज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभंगज्ञान ये तीन मिथ्याज्ञान हैं ।
नौवां – योगद्वार
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२४. इमीसे णं जाव किं मणजोगी, वड्जोगी, कायजोगी ?
तिण्णि वि ।
[२४. प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं अथवा काययोगी हैं ?
[२४. उ.] गौतम! वे प्रत्येक तीनों प्रकार के हैं; अर्थात् सभी नारक जीव मन, वचन और काया, इन तीनों योगों वाले हैं ।
२५. [ १ ] इमीसे णं जाव मणजोए वट्टमाणा किं कोहोवउत्ता० !
सत्तावीसं भंगा।
[ २ ] एवं वइजोए। एवं कायजोए ।
१. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ७२-७३
(ख) देखें – नन्दीसूत्र में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान का वर्णन