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प्रथम शतक : उद्देशक-४] उदीर्ण-उपशान्तमोह जीव के सम्बन्ध में उपस्थान-उपक्रमणादि प्ररूपणा
२[१] जीवे णं भंते ! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं उवट्ठाएज्जा? हंता, उवट्ठाएज्जा।
[२-१ प्र.] भगवन्! (पूर्व-) कृत मोहनीय कर्म जब उदीर्ण (उदय में आया) हो, तब जीव उपस्थान-परलोक की क्रिया के लिए उद्यम करता है ?
[२-१ उ.] हाँ गौतम! वह उपस्थान करता है। [२] से भंते! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? गोयमा! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, नो अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। [२-२ प्र.] भगवन्! क्या जीव वीर्यता से-सवीर्य होकर उपस्थान करता है या अवीर्यता से? [२-२ उ.] गौतम! जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, अवीर्यता से नहीं करता।
[३] जदि वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा किं बालवीरियत्ताएं उवट्ठाएज्जा? पंडितवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? बाल-पंडितवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा?
. गोयमा! बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, णो पंडितवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, नो बालपंडित-वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा।
[२-३ प्र.] भगवन्! यदि जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बाल-पण्डितवीर्य से करता है ?
[२-३ उ.] गौतम! वह बालवीर्य से उपस्थान करता है, किन्तु पण्डितवीर्य से या बालपण्डितवीर्य से उपस्थान नहीं करता।
३.१] जीवे णं भंते! मोहणिजेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं अवक्कमेज्जा? हंता, अवक्कमेज्जा।
[३-१ प्र.] भगवन् ! (पूर्व-) कृत (उपार्जित) मोहनीय कर्म जब उदय में आया हो, तब क्या जीव अपक्रमण (पतन) करता है; अर्थात् – उत्तम गुणस्थान से हीन गुणस्थान में जाता है ?
[३-१ उ.] हाँ, गौतम! अपक्रमण करता है। [२] से भंते! जाव बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा ३?
गोयमा! बालवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा, नो पंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा, सिय बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा।
[३-२ प्र.] भगवन्! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बालपण्डितवीर्य से?
[३-२ उ.] गौतम! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, पण्डितवीर्य से नहीं करता; कदाचित्