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________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [ ३ ] जहा ते भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति ? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति तहा ते अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमति ? ७०] हंता, गोयमा ! जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमति तहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति, जहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति तहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमति । [७-३ प्र.] भगवन्! जैसे आपके मत से अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है, उसी प्रकार नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है ? और जैसे आपके मत से नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है, उसी प्रकार अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है ? [७-३ उ.] गौतम ! जैसे मेरे मत से अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है, उसी प्रकार नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है और जिस प्रकार मेरे मत से नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है; उसी प्रकार अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है। [४] से णूणं भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं ? जहा परिणम दो आलावगा तहा गमणिज्जेण वि दो आलावगा भाणितव्वा जाव तहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं । [७-४ प्र.] भगवन्! क्या अस्तित्व, अस्तित्व में गमनीय है ? [७-४ उ.] हे गौतम! जैसे- 'परिणत होता है' इस पद के आलापक कहे हैं; उसी प्रकार यहाँ 'गमनीय' पद के साथ भी दो आलापक कहने चाहिए; यावत् 'मेरे मत से अस्तित्व, अस्तित्व में गमनीय है । ' [ ५ ] जहा ते भंते! एत्थं गमणिज्जं तहा ते इहं गमणिज्जं ! जहा ते इहं गमणिज्जं तहा ते एत्थं गमणिज्जं ? हंता, गोयमा ! जहा मे एत्थं गमणिज्जं जाव तहा मे एत्थं गमणिज्जं । [७-५ प्र.] भगवन्! जैसे आपके मत में यहाँ (स्वात्मा) में गमनीय है, उसी प्रकार इह (परात्मा में भी) गमनीय है, जैसे आपके मत में इह ( परात्मा में गमनीय है, उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) भी गमनीय है ? [७-५ उ. ] हाँ, गौतम ! जैसे मेरे मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, यावत् (परात्मा में भी गमनीय है, और जैसे परात्मा में गमनीय है) उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है । विवेचन – अस्तित्व - नास्तित्व की परिणति और गमनीयता आदि का विचार - प्रस्तुत ७वें सूत्र में विविध पहलुओं - अस्तित्व - नास्तित्व की परिणति एवं गमनीयता आदि के सम्बन्ध में चर्चा गई है। अस्तित्व की अस्तित्व में और नास्तित्व की नास्तित्व में परिणति : व्याख्या - अस्तित्व का अर्थ है - जो पदार्थ जिस रूप में विद्यमान है, उसका उसी रूप में रहना । ' अस्तित्व अस्तित्व में
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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