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## Chapter 18:
**Seven Fearful Places (Bhayasthanas) are mentioned, such as:**
* **Ihalokabhay:** Fear arising from beings of the same species, like a human fearing another human.
* **Paralokabhay:** Fear arising from beings of different species, like a human fearing an animal.
* **Adanabhay:** Fear of losing acquired wealth.
* **Akasmatbhay:** Fear arising from one's own mental fluctuations without any external cause.
* **Aajivabhay:** Fear related to livelihood.
* **Maranabhay:** Fear of death.
* **Ashlokabhay:** Fear of slander or defamation.
**Seven Agitations (Samudghatas) are mentioned, such as:**
* **Vedanasamudghata:** Agitation due to pain.
* **Kasayasamudghata:** Agitation due to passions.
* **Marananthikasamudghata:** Agitation due to the proximity of death.
* **Vaikriyasamudghata:** Agitation due to mental fluctuations.
* **Tejasasamudghata:** Agitation due to energy.
* **Aharakasamudghata:** Agitation due to food.
* **Kevalisamudghata:** Agitation due to the expansion of the self-regions (Atma-pradeshas) in the form of punishment, barriers, churning, and filling the world, to equalize the state of the Kevali Bhagavan's feelings, name, and lineage karma with the remaining moment of the lifespan karma.
**36:** The Shraman Bhagavan Mahavira, the great sage, was seven ratni-hath (a measure of length) tall.
**39:** In this Jambudvipa island, seven year-long mountains are mentioned, such as:
* **Chullahimvanta:** Small Himalayas.
* **Mahahimvanta:** Great Himalayas.
* **Nishada:** Nishada mountain.
* **Nilavanta:** Blue mountain.
* **Rukmi:** Shining mountain.
* **Sikhari:** Peak mountain.
* **Mandara:** Mandara (Mount Sumeru).
**Also, in this Jambudvipa island, seven regions are mentioned, such as:**
* **Bharat:** Bharat region.
* **Hemvata:** Hemvata region.
* **Harivarsa:** Harivarsa region.
* **Mahavideha:** Mahavideha region.
* **Ramya:** Ramya region.
* **Airavavat:** Airavavat region.
* **Eravata:** Eravata region.
**40:** Those who have attained the twelfth Gunasthan, Kshinamoha, free from passions, experience the remaining seven karmas, except for the Mohaniya karma.
**41:** Seven stars are mentioned in the Great Constellation (Mahanakhatta). Seven stars are mentioned in the East (Puvvadari). Seven stars are mentioned in the South (Dahindarai). Seven stars are mentioned in the West (Avaradari). Seven stars are mentioned in the North (Uttardarai).
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१८]
[ समवायाङ्गसूत्र
सप्तस्थानक - समवाय
३७ - सत्त भट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगभए परलोगभएं आदाणभए अकम्हाभए आजीवभए मरणभए असिलोगभए । सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वेडव्वियसमुग्धाए तेयसमुग्धाए आहारसमुग्धाए केवलिसमुग्धाए ।
सात भयस्थान कहे गये हैं, जैसे- इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्मात्भय, आजीवभय, मरणभय और अश्लोकभय । सात समुद्घात कहे गये हैं, जैसे - वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात, तेजससमुदघात, आहारकसमुद्घात और केवलिसमुद्घात ।
विवेचन – सजातीय जीवों से होने वाले भय को इहलोकभय कहते हैं, जैसे- मनुष्य को मनुष्य से होने वाला भय । विजातीय जीवों से होने वाले भय को परलोकभय कहते हैं। जैसे - मनुष्य को पशु से होने वाला भय। उपार्जित धन की सुरक्षा का भय आदानभय कहलाता है। बिना किसी बाह्य निमित्त के अपने ही मानसिक विकल्प से होने वाले भय को अकस्मात् भय कहते । जीविका सम्बन्धी भय को आजीवभय कहते हैं। मरण के भय को मरणभय कहते हैं अश्लोक का अर्थ है – निन्दा या अपकीर्त्ति । निन्दा या अपकीर्त्ति के भय को अश्लोकभय कहते हैं। समुद्घात के छह भेदों का स्वरूप पहले कह आये हैं । केवली भगवान् के वेदनीय, नाम और गोत्रकर्म की स्थिति को आयुकर्म की शेष रही अन्तर्मुहूर्त प्रमाणस्थिति के बराबर करने के लिए जो दंड, कपाट, मन्थान और लोकपूरण रूप आत्म-प्रदेशों का विस्तार होता है, उसे केवलिसमुदघात कहते हैं
३६ - समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेण होत्था श्रमण भगवान् महावीर सात रत्नि-हाथ प्रमाण शरीर से ऊंचे थे ।
३९ – इहेव जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - चुल्लहिमवंते महाहिमवंते निसढे नीलवंते रुप्पी सिहरी मन्दरे । इहेव जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा - भरहे हेमवते हरिवासे महाविदेहे रम्मए एरण्णवए एरवए ।
इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं, जैसे - क्षुल्लक हिमवंत, महाहिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मी, शिखरी और मन्दर (सुमेरु पर्वत)। इस जंबूद्वीप नामक द्वीप में सात क्षेत्र कहे गये हैं, जैसे- भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, ऐरण्यवत और ऐरवत ।
४० - खीणमोहेणं भगवया मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्पपगडीओ वेए (ज्ज ) ई ।
बारहवें गुणस्थानवर्ती क्षीणमोह वीतराग मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का वेदन करते
हैं ।
४१ - महानक्खत्ते सत्ततारे पण्णत्ते । कत्तिआइआ सत्तनक्खत्ता पुव्वदारिआ पण्णत्ता । [ पाठा० - अभियाइया सत्त नक्खत्ता ] | महाझ्या सत्त नक्खत्ता दाहिणदारिआ पण्णत्ता । अणुराहाइआ सत्त नक्खत्ता अवरदारिआ पण्णत्ता । धणिट्ठाइया सत्त नक्खत्ता उत्तरदारिआ