Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
The fifth sutra of the ninety-ninth Samvaya - 'Savveshi nan vattuveyaddhapavvaayanam.....' - is also mentioned in Jambudvipaprajnapti 684, where it states that the distance between the top of all the Vrittavaitadhya mountains and the bottom of the Saugandhika Kanda is ninety hundred yojanas.
The first sutra of the ninety-ninth Samvaya - 'Egmegass nan ranno chaurant chakkavattiss....' - is also mentioned in Jambudvipaprajnapti 685, where it states that each Chakravarti has ninety-nine crore grams.
The description from the first to the sixth sutra of the ninety-ninth Samvaya is also found in Jambudvipaprajnapti 686.
The sixth sutra of the hundredth Samvaya - 'Savvevi nan dihaveyaddhapavvaaya......' - is also mentioned in Jambudvipaprajnapti 687, where it states that all the Dirghavaitadhya mountains are one hundred koshas high.
The third sutra of the two hundredth Samvaya - 'Jambuddive nan dive do kanchanpavvay-saya pannatta.....' - is also mentioned in Jambudvipaprajnapti 688, where it describes two hundred Kanchanaka mountains in Jambudvipa.
The description from the first to the seventh sutra of the five hundredth Samvaya is also found in Jambudvipaprajnapti 689.
The description from the second to the sixth sutra of the thousandth Samvaya is also found in Jambudvipaprajnapti 690.
Thus, there is a similarity of subject matter in many places in the Samvayanga and Jambudvipaprajnapti. Due to the fear of expansion, we have left out the comparison of some sutras here.
Samvayanga and Suryaprajnapti
Suryaprajnapti is the sixth Upanga. Dr. Winternitz considered Suryaprajnapti to be a scientific text. Dr. Schubring, in his speech at the University of Hamburg in Germany, said that "the logical and consistent principles presented by Jain thinkers are invaluable and important even from the perspective of modern scientists. Along with refined cosmographical ideas, there is a high standard of astronomy and mathematics. Suryaprajnapti deeply discusses mathematics and astronomy, therefore, without studying Suryaprajnapti, the history of Indian astronomy cannot be understood correctly."
________________
नब्बेवें समवाय का पाँचवाँ सूत्र - 'सव्वेसि णं वट्टवेयड्ढपव्वयाणं.....' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६८४ में भी सर्व वृत्तवैताढ्य पर्वतों के शिखर के ऊपर से सौगंधिक काण्ड के नीचे के चरमान्त का अव्यवहित अन्तर नब्बे सौ योजन कहा है।
छियानवेंवे समवाय का पहला सूत्र - 'एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंत चक्कवट्टिस्स.... ' है तो जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ६८५ में भी प्रत्येक चक्रवर्ती के छानवे छानवे करोड़ ग्राम बताये हैं ।
निन्यानवेंवे समवाय के पहले सूत्र से लेकर छट्ठे सूत्र तक जो वर्णन है वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ६८६ में भी ज्यों का त्यों मिलता है ।
सौवें समवाय का छठा सूत्र - 'सव्वेवि णं दीहवेयड्ढपव्वया......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६८७ में सर्व दीर्घवैताढ्य पर्वत सौ-सौ कोश ऊंचे प्ररूपित हैं ।
दो सौवें समवाय का तीसरा सूत्र - 'जंबुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपव्वय-सया पण्णत्ता.....' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ६८८ में भी जम्बूद्वीप में दो सौ कांचनक पर्वतों का वर्णन है।
पांच सौवें समवाय में प्रथम सूत्र से लेकर सातवें सूत्र तक जो वर्णन है वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६८९ में भी इसी तरह मिलता है।
हजारवें समवाय में दूसरे सूत्र से लेकर छठे सूत्र तक जो वर्णन है, वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ६९० में भी इसी तरह देखा जा सकता है।
इस तरह समवायांग और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति मं अनेक स्थलों पर विषयसाम्य है । विस्तारभय से कुछ सूत्रों की तुलना जानकर हमने यहाँ पर छोड़ दी है।
समवायांग और सूर्यप्रज्ञप्ति
सूर्यप्रज्ञप्ति छठा उपांग है। डॉ. विन्टरनित्ज ने सूर्यप्रज्ञति को एक वैज्ञानिक ग्रन्थ माना है। डॉ. शुविंग ने जर्मनी की हेम्बर्ग यूनिवर्सिटी में अपने भाषण में कहा था कि "जैन विचारकों ने जिन तर्कसम्मत एवं सुसंगत सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है वे आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं की दृष्टि से भी अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण है। विश्व रचना के सिद्धान्त साथ उसमें उच्चकोटि का गणित एवं ज्योतिषविज्ञान भी मिलता है। सूर्यप्रज्ञप्ति में गणित और ज्योतिष पर गहराई से विचार किया गया है, अतः सूर्यप्रज्ञप्ति के अध्ययन के बिना भारतीय ज्योतिष के इतिहास को सही रूप से नहीं समझा जा सकता । ६९१
६८४.
६८५.
६८६.
६८७.
६८८.
६८९.
६९०.
६९१.
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ४, सूत्र ८२
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ३, सूत्र ६७
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ४, सूत्र १०३, १३४
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष १, सूत्र १२
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ६, सूत्र १२५
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ४, सूत्र १२५, ३३, ७०, ८६, ९१, ९७, ७५
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्ष ४, सूत्र ८८, ७२
He who has thorough knowledge of the structure of the world cannot but admire the inward logic and harmony of Jain Ideas. Hand in hand with refined casmograhical ideas goes a high standard of Astronomy and Mathematics. A history of Indian Astronomy is not conceivable without the famous "Surya Pragyapati " -Dr. Schubring.
[ ९७]