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स्थानाङ्गसूत्रम्
काण्ड-सूत्र
१६१ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणे कंडे दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते। इस रत्नप्रभा पृथिवी का रत्नकाण्ड दश सौ (१०००) योजन मोटा कहा गया है (१६१)। १६२– इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे दस जोयणसयाइं बाहल्लेणं पण्णत्ते। इस रत्नप्रभा पृथिवी का वज्रकाण्ड दश सौ योजन मोटा कहा गया है (१६२)।
१६३– एवं वेरुलिए, लोहितक्खे, मसारगल्ले, हंसगब्भे, पुलए, सोगंधिए, जोतिरसे, अंजणे, अंजणपुलए, रययं, जातरूवे, अंके, फलिहे, रिटे। जहा रयणे तहा सोलसविधा भाणितव्वा।
इसी प्रकार वैडूर्यकाण्ड, लोहिताक्षकाण्ड, मसारगल्लकाण्ड, हंसगर्भकाण्ड, पुलककाण्ड, सौगन्धिककाण्ड, ज्योतिरसकाण्ड, अंजनकाण्ड, अंजनपुलककाण्ड, रजतकाण्ड, जातरूपकाण्ड, अंककाण्ड, स्फटिककाण्ड और रिष्टकाण्ड भी दश सौ–दश सौ योजन मोटे कहे गये हैं (१६३)।
. भावार्थ- रत्नप्रभापृथिवी के तीन भाग हैं-खरभाग, पंकभाग और अब्बहुलभाग। इनमें से खरभाग के सोलह भाग हैं, जिनके नाम उक्त सूत्रों में कहे गये हैं। प्रत्येक भाग एक-एक हजार योजन मोटा है। इन भागों को काण्ड, प्रस्तट या प्रसार कहा जाता है (१६३)। उद्वेध-सूत्र
१६४- सव्वेवि णं दीव-समुद्दा दस जोयणसताइं उव्वेहेणं पण्णत्ता। सभी द्वीप और समुद्र दश सौ-दश सौ (एक-एक हजार) योजन गहरे कहे गये हैं (१६४)। १६५- सव्वेवि णं महादहा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता। सभी महाद्रह दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (१६५)। १६६- सव्वेवि णं सलिलकुंडा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता। सभी सलिलकुण्ड (प्रपातकुण्ड) दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (१६६)। १६७– सीता-सीतोया णं महाणईओ मुहमूले दस-दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ताओ।
शीता-शीतोदा महानदियों के मुखमूल (समुद्र में प्रवेश करने के स्थान) दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (१६७)। नक्षत्र-सूत्र
१६८- कत्तियाणक्खत्ते सव्वबाहिराओ मण्डलाओ दसमे मंडले चारं चरति। कृत्तिका नक्षत्र चन्द्रमा के सर्वबाह्य-मण्डल से दशवें मण्डल में संचार (गमन) करता है (१६८)। १६९- अणुराधाणक्खत्ते सव्वब्भंतराओ मंडलाओ दसमे चारं चरति।