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________________ ७१२ जैसे स्थानाङ्गसूत्रम् समणस्स भगवतो महावीरस्स सदेवमणुयासुरलोगे उराला कित्ति वण्ण- सह - सिलोगा परिव्वंति इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे । १०. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरि (सीहासणवरयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं ) पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगते केवलिपण्णत्तं धम्मं आघवेति पण्णवेत्ति ( परूवेति दंसेति णिदंसेति) उवदंसेति । श्रमण भगवान् महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर प्रतिबुद्ध हुए, १. एक महान् घोर रूप वाले, दीप्तिमान् ताड़ वृक्ष जैसे लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए । २. एक महान् श्वेत पंख वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ३. एक महान् चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ४. सर्वरत्नमयी दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ५. एक महान् श्वेत गोवर्ग को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ६. एक महान् सर्व ओर से प्रफुल्लित कमल वाले सरोवर देखकर प्रतिबुद्ध हुए। ७. एक महान्, छोटी-बड़ी लहरों से व्याप्त महासागर को स्वप्न में भुजाओं से पार किया हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ८. एक महान्, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । ९. एक महान्, हरित और वैडूर्य वर्ण वाले अपने आंत - समूह के द्वारा मानुषोत्तर पर्वत को सर्व ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । १०. मन्दर - पर्वत पर मन्दर- चूलिका के ऊपर एक महान् सिंहासन पर अपने को स्वप्न में बैठा हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए । उपर्युक्त स्वप्नों का फल श्रमण भगवान् महावीर ने इस प्रकार प्राप्त किया— १. श्रमण भगवान् महावीर महान् घोर रूप वाले दीप्तिमान् एक ताल पिशाच को स्वप्न में पराजित हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को मूल से उखाड़ फेंका। २. श्रमण भगवान् महावीर श्वेत पंखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए । उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर शुक्लध्यान को प्राप्त होकर विचरने लगे । ३. श्रमण भगवान् महावीर चित्र-विचित्र पंखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने स्व- समय और पर समय का निरूपण करने वाले गणिपिटक का व्याख्यान किया, प्रज्ञापन किया, प्ररूपण किया, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन द्वादशाङ्ग कराया।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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