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स्थानाङ्गसूत्रम्
नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण का धरणप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ (१०००) योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति गहरा और मूल में दश सौ (१०००) योजन विस्तार वाला कहा गया है (५४)।
५५- धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररणो कालवालस्स महारण्णो कालवालप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाइं उढें उच्चत्तेणं एवं चेव।
नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज के लोकपाल कालपाल महाराज का कालपालप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति गहरा और मूल में दश सौ योजन विस्तार वाला कहा गया है (५५)।
५६– एवं जाव संखवालस्स।
इसी प्रकार कोलपाल, शैलपाल और शंखपाल नामक लोकपालों के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वत की ऊंचाई, गहराई और मूल में विस्तार जानना चाहिए (५६)।
५७– एवं भूताणंदस्सवि।
इसी प्रकार भूतेन्द्र भूतराज भूतानन्द के भूतानन्दप्रभ नामक उत्पातपर्वत की ऊंचाई एक हजार योजन, गहराई एक हजार गव्यूति और मूल का विस्तार एक हजार योजन जानना चाहिए (५७)।
५८— एवं लोगपालाणवि से, जहा धरणस्स।
इसी प्रकार भूतानन्द के लोकपाल महाराज कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई एक-एक हजार योजन, गहराई एक-एक हजार गव्यूति और मूल में विस्तार एकएक हजार योजन धरण के समान जानना चाहिए (५८)।
५९— एवं जाव थणितकुमाराणं सलोगपालाणं भाणियव्वं, सव्वेसिं उप्पायपव्वया भाणियव्वा सरिसणामगा।
इसी प्रकार सुपर्णकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों के इन्द्रों के और उनके लोकपालों के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई, गहराई और मूल में विस्तार धरण तथा उनके लोकपालों के समान जानना चाहिए (५९)।
६०– सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सक्कप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साइं उब्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते।
देवेन्द्र देवराज शक्र के शक्रप्रभ नामक उत्पात पर्वत की ऊंचाई दश हजार योजन, गहराई दश हजार गव्यूति और मूल में विस्तार दश हजार योजन कहा गया है (६०)।
६१- सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो। जधा सक्कस्स तधा सव्वेसिं लोगपालाणं, सव्वेसिं च इंदाणं जाव अच्चुयत्ति। सव्वेसिं पमाणमेगं। ___ देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम के सोमप्रभ नामक उत्पातपर्वत का वर्णन शक्र के उत्पातपर्वत के समान जानना चाहिए।
शेष सभी लोकपालों के उत्पातपर्वतों का तथा अच्यूतकल्पपर्यन्त सभी इन्द्रों के उत्पातपर्वतों की ऊंचाई