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नवम स्थान
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७१- भुयगपरिसप्प-थलयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता।
पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक स्थलचर-भुजग-परिसरों की नौ लाख जाति-कुलकोटियां कही गई हैं (७१) । पापकर्म-सूत्र
७२– जीवा णं णवट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा—पुढविकाइयणिव्वत्तिते, (आउकाइयणिव्वत्तिते, तेउकाइयणिव्वत्तिते, वाउकाइयणिव्वत्तिते, वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, बेइंदियणिव्वत्तिते, तेइंदियणिव्वत्तिते, चउरिदियणिव्वत्तिते,) पंचिंदियणिव्वत्तिते।
एवं चिण-उवचिण (बंध-उदीर-वेद तह) णिज्जरा चेव।
जीवों ने नौ स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्मरूप से अतीतकाल में संचय किया है, वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे, जैसे
१. पृथ्वीकायिकनिर्वर्तित पुद्गलों का, २. अप्कायिकनिर्वर्तित पुद्गलों का, ३. तेजस्कायिकनिर्वर्तित पुद्गलों का, ४. वायुकायिकनिर्वर्तित पुद्गलों का, ५. वनस्पतिकायिकनिर्वर्तित पुद्गलों का, ६. द्वीन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, ७. त्रीन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, ८. चतुरिन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, ९. पंचेन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का।
इसी प्रकार उनका उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। पुद्गल-सूत्र
७३- णवपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता जाव णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। नौ प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध अनन्त हैं। आकाश के नौ प्रदेशों में अवगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं। नौ समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं। नौ गुण काले पुद्गल अनन्त हैं। इसी प्रकर शेष वर्ण तथा गन्ध, रस और स्पर्शों के नौ गुण वाले पुद्गल अनन्त जानना चाहिए (७३)।
॥ नवम स्थान समाप्त ॥