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________________ नवम स्थान ६७१ आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे—प्रतिक्रमण और अचलेतायुक्त पांच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिक्रमण और अचेलतायुक्त पांच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण करेंगे। आर्यो! मैंने श्रमणोपासकों के लिए जैसे पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण करेंगे। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का प्रतिषेध किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का प्रतिषेध करेंगे। आर्यो! मेरे जैसे नौ गण और ग्यारह गणधर हैं, इसी प्रकार अर्हत् महपद्म के भी नौ गण और ग्यारह गणधर होंगे। आर्यो! जैसे मैं तीस वर्ष तक अगारवास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुआ, बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय को प्राप्त कर, तेरह पक्षों से कम तीस वर्षों तक केवलि-पर्याय पाकर, बयालीस वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय पालन कर सर्व आयु बहत्तर वर्ष पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वृत्त होकर सर्व दुःखों का अन्त करूंगा। इसी प्रकर अर्हत् महापद्म भी तीस वर्ष तक अगारवास में रह कर मुण्डित हो, अगार से अनगारिता में प्रव्रजित होंगे, बारह वर्ष तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय को प्राप्त कर, तेरह पक्षों से कम तीस वर्षों तक केवलिपर्याय पाकर बयालीस वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय पालन कर, बहत्तर वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वृत्त होकर सर्वदुःखों का अन्त करेंगे। जिस प्रकार के शील-समाचार वाले अर्हत् तीर्थंकर महावीर हुए हैं, उसी प्रकार के शील-समाचार वाले अर्हत् महापद्म होंगे। नक्षत्र-सूत्र ६३ -- णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा ___ अभिई समणो धणिट्ठा, रेवति अस्सिणि मग्गसिर पूसो । हत्थो चित्ता य तहा, पच्छंभागा णव हवंति ॥ १॥ नौ नक्षत्र चन्द्रमा के पृष्ठ भाग के होते हैं, अर्थात् चन्द्रमा उनका पृष्ठ भाग से भोग करता है, जैसे १. अभिजित, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. रेवती,५. अश्विनी, ६. मृगशिर, ७. पुष्य, ८. हस्त, ९. चित्रा (६३)। विमान-सूत्र ६४ - आणत-पाणत-आरणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उ8 उच्चतेणं पण्णत्ता। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में विमान नौ योजन ऊंचे कहे गये हैं (६४)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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