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________________ नवम स्थान सार : संक्षेप नौवें स्थान में नौ-नौ संख्याओं से सम्बन्धित विषयों का संकलन किया गया है। इसमें सर्वप्रथम विसंभोग का वर्णन है। संभोग का अर्थ है—एक समान धर्म का आचरण करने वाले साधुओं का एक मण्डली में खान-पान आदि व्यवहार करना। ऐसे एक साथ खान-पानादि करने वाले साधु को सांभोगिक कहा जाता है। जब कोई साधु आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, गण, संघ आदि के प्रतिकूल आचरण करता है, तब उसे पृथक् कर दिया जाता है, अर्थात् उसके साथ खान-पानादि बन्द कर दिया जाता है, इसे ही सांभोगिक से असांभोगिक करना कहा जाता है। यदि ऐसा न किया जाय तो संघमर्यादा कायम नहीं रह सकती। ___संयम की साधना में अग्रसर होने के लिए ब्रह्मचर्य का संरक्षण बहुत आवश्यक है, अतः उसके पश्चात् ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों या बाड़ों का वर्णन किया गया है। ब्रह्मचारी को एकान्त में शयन-आसन करना, स्त्री-पशुनपुंसकादि से संसक्त स्थान से दूर रहना, स्त्रियों की कथा न करना, उनके मनोहर अंगों को न देखना, मधुर और गरिष्ठ भोजन-पान न करना और पूर्व में भोगे हुए भोगों की याद न करना अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा उसका ब्रह्मचर्य स्थिर नहीं रह सकता। साधक के लिए नौ विकृतियों (विगयों) का, पाप के नौ स्थानों का और पाप-वर्धक नौ प्रकार के श्रुत का परिहार भी आवश्यक है, इसलिए इनका वर्णन प्रस्तुत स्थानक में किया गया है। भिक्षा-पद में साधु को नौ कोटि-विशुद्ध भिक्षा लेने का विधान किया गया है। देव-पद में देव-सम्बन्धी अन्य वर्णनों के साथ नौ ग्रैवेयकों का, कूट-पद में जम्बूद्वीप के विभिन्न स्थानों पर स्थित कूटों का संग्रहणी गाथाओं के द्वारा नाम-निर्देश किया गया है। इस स्थान में सबसे बड़ा 'महापद्म' पद है। महाराज बिम्बराज श्रेणिक आगामी उत्सर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर होंगे। उनके नारकावास से निकलकर महापद्म के रूप में जन्म लेने, उनके अनेक नाम रखे जाने, शिक्षा-दीक्षा लेने, केवली होने और वर्धमान स्वामी के समान ही विहार करते हुए धर्म-देशना देने एवं उन्हीं के समान ७२ वर्ष की आयु पालन कर अन्त में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत और सर्व दु:खों के अन्त करने का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस स्थान में रोग की उत्पत्ति के नौ कारणों का भी निर्देश किया गया है। उनमें आठ कारण तो शारीरिक रोगों के हैं और नौवां 'इन्द्रियार्थ-विकोपन' मानसिक रोग का कारण है। रोगोत्पत्ति-पद के ये नौवों ही कारण मननीय हैं और रोगों से बचने के लिए उनका त्याग आवश्यक है। अवगाहना, दर्शनावरण कर्म, नौ महानिधियाँ, आयु:परिणाम, भावी तीर्थंकर, कुलकोटि, पापकर्म आदि पदों के द्वारा अनेक ज्ञातव्य विषयों का संकलन किया गया है। संक्षेप में यह स्थानक अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। 000
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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