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अष्टम स्थान
६२३.
संयम-असंयम-सूत्र
३३— चउरिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स अट्ठविधे संजमे कज्जति, तं जहा चक्खुमातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। (घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। जिब्भामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति)। फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति।
चतुरिन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले के आठ प्रकार का संयम होता है, जैसे१. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, २. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, ३. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, ४. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, ५. रसनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, ६. रसनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, ७. स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, ८. स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से (३३)।
३४– चरिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स अट्ठविधे असंजमे कजति, तं जहा–चक्खुमातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। (घाणामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता.भवति। घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति)। फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति।
चतुरिन्द्रिय जीवों का घात करने वाले के आठ प्रकार का असंयम होता है, जैसे१. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, २. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, ३. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, ४. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, ५. रसनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, ६. रसनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, ७. स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से,
८. स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से (३४)। सूक्ष्म-सूत्र
३५- अट्ठ सुहुमा पण्णत्ता, तं जहा—पाणसुहुमे, पणगसुहुमे, बीयसुहुमे, हरितसुहुमे, पुष्फसुहुमे,