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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् ६. अल्पाधिकरण— एकलविहार प्रतिमा स्वीकार करने वाले को उपशान्त कलह की उदीरणा तथा नये कलहों का उद्भावक नहीं होना चाहिए। ७. धृतिमान्– उसे रति-अरति समभावी एवं अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों को सहन करने में धैर्यवान् होना चाहिए। ८. वीर्यसम्पन्न – स्वीकृत साधना में निरन्तर उत्साह बढ़ाते रहना चाहिए। उक्त आठ गुणों से सम्पन्न अनगार ही एकल-विहार-प्रतिमा को स्वीकार करने के योग्य माना गया है। योनि-संग्रह-सूत्र २– अट्ठविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा—अंडगा, पोतगा, (जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा), उब्भिगा, उववातिया। योनि-संग्रह आठ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. अण्डज, २. पोतज, ३. जरायुज, ४. रसज, ५. संस्वेदज, ६. सम्मूच्छिम, ७. उद्भिज्ज, ८. औपपातिक (२)। गति-आगति-सूत्र ३- अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पण्णत्ता, तं जहा—अंडए अंडएसु उववजमाणे अंडएहितो वा, पोतएहितो वा, (जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिएहिंतो वा), उववातिएहिंतो वा उववजेज्जा। से चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, (जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भियत्ताए वा), उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा। अण्डज जीव आठ गतिक और आठ आगतिक कहे गये हैं, जैसे अण्डज जीव अण्डजों में उत्पन्न होता हुआ अण्डजों से, या पोतजों से, या जरायुजों से, या रसजों से, या संस्वेदजों से, या सम्मूछिमों से, या उद्भिज्जों से, या औपपातिकों से आकर उत्पन्न होता है। वही अण्डज जीव वर्तमान पर्याय अण्डज को छोड़ता हुआ अण्डजरूप से, या पोतजरूप से, या जरायुजरूप से, या रसजरूप से, या संस्वेदजरूप से, या सम्मूछिमरूप से, या उद्भिज्जरूप से, या औपपातिकरूप से उत्पन्न होता है (३)। ४- एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती णत्थि। इसी प्रकार पोतज भी और जरायुज भी आठ गतिक और आठ आगतिक जानना चाहिए। शेष रसज आदि जीवों की गति और आगति आठ प्रकार की नहीं होती है (४)। कर्म-बन्ध-सूत्र ५- जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहाणाणावरणिजं, दरिसणावरणिज्जं, वेयणिजं, मोहणिजं, आउयं, णाम, गोत्तं, अंतराइयं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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