________________
५९२
६. नन्दन – नर्तकसेना का अधिपति ।
७. तेतली — गन्धर्वसेना का अधिपति (११५) ।
स्थानाङ्गसूत्रम्
११६— भूताणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा —— पायत्ताणिए जाव गंधव्वाणिए ।
दक्खे पायत्ताणियाहिवती जाव णंदुत्तरे रहाणियाहिवई, रत्ती णट्टाणियाहिवई, माणसे गंधव्वाणियाहिवई ।
नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं, जैसे—सेनाएँ—१. पदातिसेना, २. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना, ४. महिषसेना, ५. रथसेना, ६ . नर्तकसेना, ७. गन्धर्वसेना। सेनापति — १. दक्ष पदातिसेना का अधिपति ।
२. अश्वराज सुग्रीव— अश्वसेना का अधिपति ।
३. हस्तिराज सुविक्रम — हस्तिसेना का अधिपति ।
४. श्वेतकण्ठ— महिषसेना का अधिपति ।
५. नन्दोत्तर - रथसेना का अधिपति ।
६. रति नर्तकसेना का अधिपति ।
७. मानस — गन्धर्वसेना का अधिपति (११६)।
११७ ( जधा धरणस्स तथा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ।
जिस प्रकार धरण की सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार दक्षिण दिशा के भवनवासी देवों के इन्द्र वेणुदेव, हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब और घोष की भी सात-सात सेनाएँ और सात. सात सेनापति जानना चाहिए (११७) ।
११८ - जधा भूताणंदस्स तथा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स ) ।
जिस प्रकार भूतानन्द की सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार उत्तर दिशा के भवनवासी देवों के इन्द्र, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमाणव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष की भी सात-सात सेनाएं और सात-सात सेनापति जानना चाहिए (११८) ।
११९ – सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवती पण्णत्ता, तं जहा पायत्ताणिए जाव रहाणिए, णट्टाणिए, गंधव्वाणिए ।
हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिपती जाव माढरे रधाणियाधिपती, सेते णट्टाणियाहिवती, तुंबुरु गंधव्वाणियाधिपती |
देवेन्द्र देवराज शक्र की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं, जैसे—
सेनाएं — १. पदातिसेना, २. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना, ४. वृषभसेना, ५. रथसेना, ६. नर्तकसेना, ७. गन्धर्वसेना । सेनापति — १. हरिनैगमेषी पदातिसेना का अधिपति ।