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सप्तम स्थान
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नदियां पुष्करोदसमुद्र में जाकर मिलती हैं (६०)। कुलकर-सूत्र
६१—जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था, तं जंहा— संग्रहणी-गाथा
मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे ।
विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥१॥ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में अतीत उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर हुए, जैसे१. मित्रदामा, २. सुदामा, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. विमलघोष, ६. सुघोष, ७. महाघोष (६१)। ६२–जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था
पढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे ।
ततो य पसेणइए, मरुदेवे चेव णाभी य ॥ १॥ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी में सात कुलकर हुए हैं, जैसे१. विमलवाहन, २. चक्षुष्मान्, ३. यशस्वी, ४. अभिचन्द्र , ५. प्रसेनजित्, ६. मरुदेव, ७. नाभि (६२)। ६३- एएसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ हुत्था तं जहा
चंदजस चंदकंता, सुरूव पडिरूव चक्खुकंता य ।।
सिरिकंता मरुदेवी, कुलकरइत्थीण णामाई ॥१॥ इन सात कुलकरों की सात भार्याएं थीं, जैसे१. चन्द्रयशा, २. चन्द्रकान्ता, ३. सुरूपा, ४. प्रतिरूपा, ५. चक्षुष्कान्ता, ६. श्रीकान्ता, ७. मरुदेवी (६३)। ६४–जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति
मित्तवाहण सुभोमे य, सुप्पभे य सयंपभे ।
दत्ते सुहुमे सुबंधू य, आगमिस्सेण होक्खती ॥१॥ जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होगें, जैसे१. मित्रवाहन, २. सुभौम, ३. सुप्रभ, ४. स्वयम्प्रभ, ५. दत्त, ६. सूक्ष्म, ७. सुबन्धु (६४)। ६५- विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छिसु, तं जहा
मतंगया य भिंगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा ।
मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ॥१॥ विमलवाहन कुलकर में समय के सात प्रकार के (कल्प-) वृक्ष निरन्तर उपभोग में आते थे, जैसे१. मदांगक, २. भृग, ३. चित्रांग, ४. चित्ररस, ५. मण्यंग, ६. अनग्नक, ७. कल्पवृक्ष (६५)। ६६– सत्तविधा दंडनीती पण्णत्ता, तं जहा हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, परिभासे, मंडलबंधे,