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षष्ठ स्थान
की आयु का बन्ध करते हैं (१२१) ।
१२२ – असंखेज्जवासाउया सण्णिमणुस्सा णियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति । छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर असंख्येयवर्षायुष्क संज्ञि मनुष्य नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं? (१२२) ।
१२३ – वाणमंतरा जोतिसवासिया वेमाणिया जहा णेरइया ।
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव नारक जीवों के समान छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर परभव की आयु का नियम से बन्ध करते हैं (१२३) ।
भाव-सूत्र
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१२४– छव्विधे भावे पण्णत्ते, तं जहा— ओदइए, उवसमिए, खइए, खओवसमिए, पारिणामिए, सण्णिवातिए ।
भाव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. औदयिक भाव — कर्म के उदय से होने वाले क्रोध, मानादि २१ भाव ।
२. औपशमिक भाव— मोहकर्म के उपशम से होने वाले सम्यक्त्वादि २ भाव ।
३. क्षायिक भघातिकर्मों के क्षय से उत्पन्न होने वाले अनन्त ज्ञान - दर्शनादि ९ भाव ।
१.
४. क्षायोपशमिक भाव घातिकर्मों के क्षयोपशम से होने वाले मति- श्रुतज्ञानादि १८ भाव ।
५. पारिणामिक भाव — किसी कर्म के उदयादि के बिना अनादि से चले आ रहे जीवत्व आदि ३ भाव । ६. सान्निपातिक भाव — उपर्युक्त भावों के संयोग से होने वाला भाव ।
जैसे— यह मनुष्य औपशमिक सम्यक्त्वी, अवधिज्ञानी और भव्य है । औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों का संयोगी सान्निपातिक भाव है।
ये द्विसंयोगी १०, त्रिसंयोगी २०, चतुः संयोगी ५ और पंचसंयोगी १ इस प्रकार सर्व २६ सान्निपातिक भाव होते हैं (१२४) ।
प्रतिक्रमण - सूत्र
१२५– छव्विहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा उच्चारपडिक्कमणे, पासवणपडिक्कमणे, इत्तरिए, आवकहिए, जंकिंचिमिच्छा, सोमणंतिए ।
प्रतिक्रमण छह प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. उच्चार - प्रतिक्रमण — मल- विसर्जन के पश्चात् वापस आने पर ईर्यापथिकी सूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण करना । २. प्रस्रवण-प्रतिक्रमण — मूत्र विसर्जन के पश्चात् वापस आने पर ईर्यापथिकी सूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण
करना ।
दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच वर्तमान भव की आयु के नौ मास शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं। (देखो - गो. जीवकाण्ड गाथा ५१७ टीका)