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षष्ठस्थान
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१. संशय-प्रश्न-संशय दूर करने के लिए पूछा गया। २. व्युद्ग्रह-प्रश्न— मिथ्याभिनिवेश से दूसरे को पराजित करने के लिए पूछा गया। ३. अनुयोगी-प्रश्न- अर्थ-व्याख्या के लिए पूछा गया। ४. अनुलोम-प्रश्न- कुशल-कामना के लिए पूछा गया। ५. तथाज्ञान-प्रश्न- स्वयं जानते हुए भी दूसरों को ज्ञानवृद्धि के लिए पूछा गया।
६. अतथाज्ञान-प्रश्न - स्वयं नहीं जानने पर जानने के लिए पूछा गया (१११)। विरहित-सूत्र
११२- चमरचंचा णं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववातेणं।
चमरचंचा राजधानी अधिक से अधिक छह मास तक उपपात से (अन्य देव की उत्पत्ति से) रहित होती है (११२)।
११३– एगमेगे णं इंदट्ठाणे उक्कोसेणं छम्मासे विरहिते उववातेणं। एक-एक इन्द्र-स्थान उत्कर्ष से छह मास तक इन्द्र के उपपात से रहित रहता है (११३)। ११४ - अधेसत्तमा णं पुढवी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं। अधःसप्तम महातमः पृथिवी उत्कर्ष से छह मास तक नारकीजीव के उपपात से रहित रहती है (११४)। ११५- सिद्धिगती णं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं।
सिद्धगति उत्कर्ष से छह मास तक सिद्ध जीव के उपपात से रहित होती है (११५)। आयुर्बन्ध-सूत्र
११६– छव्विधे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा—जातिणामणिधत्ताउए, गतिणामणिधत्ताउए, ठितिणामणिधत्ताउए, ओगाहणाणामणिधत्ताउए, पएसणामणिधत्ताउए, अणुभागणामणिधत्ताउए।
आयुष्य का बन्ध छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. जातिनामनिधत्तायु- आयुकर्म के बन्ध के साथ जातिनामकर्म का नियम से बंधना। २. गतिनामनिधत्तायु- आयुकर्म के बन्ध के साथ गतिनामकर्म का नियम से बंधना। ३. स्थितिनामनिधत्तायु-आयुकर्म के बन्ध के साथ स्थिति का नियम से बंधना। ४. अवगाहनानामनिधत्तायु- आयुकर्म के बन्ध के साथ शरीरनामकर्म का नियम से बंधना। ५. प्रदेशनामनिधत्तायु- आयुकर्म के बन्ध के साथ प्रदेशों का नियम से बंधना। ६. अनुभागनामनिधत्तायु- आयुकर्म के बन्ध के साथ अनुभाग का नियम से बंधना (११६)। । ।
विवेचन— कर्मसिद्धान्त का यह नियम है कि जब किसी भी प्रकृति का बन्ध होगा, उसी समय उसकी स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों का भी बन्ध होगा। सूत्रोक्त छह प्रकार में से तीसरा, पाँचवां और छठा प्रकार इसी बात का सूचक है तथा आयुकर्म के बन्ध के साथ ही तज्जातीय जातिनामकर्म का, गतिनामकर्म का और शरीरनामकर्म