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________________ षष्ठस्थान ५४५ शेष चार साधु, जो अब तक उनकी परिचर्या करते थे वे उक्त प्रकार से संयम की साधना में संलग्न होकर तपस्या करते हैं और ये चारों साधु उनकी परिचर्या करते हैं। इन चारों साधुओं को निर्विष्टमानकल्प वाला कहा जाता है। परिहारविशुद्धि संयम की साधना में नौ साधु एक साथ अवस्थित होते हैं। उनमें से चार साधुओं का पहला वर्ग तपस्या करता है और दूसरे वर्ग के चार साधु उनकी परिचर्या करते हैं। एक साधु आचार्य होता है। जब दोनों वर्ग के साधु उक्त तपस्या कर चुकते हैं, तब आचार्य तपस्या में अवस्थित होते हैं और दोनों ही वर्ग के आठों साधु उनकी परिचर्या करते हैं। जिनकल्पस्थिति— विशेष साधना के लिए जो संघ से अनुज्ञा लेकर एकाकी विहार करते हुए संयम की साधना करते हैं, उनकी आचार-मर्यादा को जिनकल्पस्थिति कहा जाता है। वे अकेले मौनपूर्वक विहार करते हैं। अपने ऊपर आने वाले बड़े से बड़े उपसर्गों को शान्तिपूर्वक दृढ़ता के साथ सहन करते हैं। वर्षभनाराचसंहनन के धारक होते हैं। उनके पैरों में यदि काँटा लग जाय, तो वे अपने हाथ से उसे नहीं निकालते हैं, इसी प्रकार आँखों में धूलि आदि चली जाय, तो उसे भी वे नहीं निकालते हैं। यदि कोई दूसरा व्यक्ति निकाले, तो वे मौन एवं मध्यस्थ रहते हैं। स्थविरकल्पस्थिति— जो हीन संहनन के धारक और घोर परीषह, उपसर्गादि के सहन करने में असमर्थ होते हैं, वे संघ में रहते हुए ही संयम की साधना करते हैं, उन्हें स्थविरकल्पी कहा जाता है। महावीर-षष्ठभक्त-सूत्र १०४– समणे भगवं महावीरे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं मुंडे (भवित्ता अगाराओ अणगारियं) पव्वइए। श्रमण भगवान् महावीर अपानक (जलादिपान-रहित) षष्ठभक्त अनशन (दो उपवास) के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए (१०४)। १०५- समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छटेणं भत्तेणं अपाणएणं अणंते अणुत्तरे (णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे) समुप्पण्णे। श्रमण भगवान् महावीर को अपानक षष्ठभक्त के द्वारा अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, परिपूर्ण केवलवर ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ (१०५)। १०६- समणे भगवं महावीरे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं सिद्धे (बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे) सव्वदुक्खप्पहीणे। ___श्रमण भगवान् महावीर अपानक षष्ठभक्त से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और सर्व दुःखों से रहित हुए (१०६)। विमान-सूत्र १०७- सणंकुमार-माहिंदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के विमान छह सौ योजन उत्कृष्ट ऊँचाई वाले कहे गए हैं (१०७)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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