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________________ ५२० स्थानाङ्गसूत्रम् इन्द्रियार्थ-सूत्र १४- छ इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा—सोइंदियत्थे, (चक्खिदियत्थे, घाणिंदियत्थे, जिब्भिदियत्थे,) फासिंदियत्थे, णोइंदियत्थे। इन्द्रियों के छह अर्थ (विषय) कहे गये हैं, जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थ- शब्द, २. चक्षुरिन्द्रिय का अर्थ— रूप, ३. घ्राणेन्द्रिय का अर्थ- गन्ध, ४. रसनेन्द्रिय का अर्थ- रस, ५. स्पर्शनेन्द्रिय का अर्थ- स्पर्श, ६. नोइन्द्रिय (मन) का अर्थ- श्रुत (१४)। विवेचन— पाँच इन्द्रियों के विषय तो नियत एवं सर्व-विदित हैं। किन्तु मन का विषय नियत नहीं है। वह सभी इन्द्रियों के द्वारा गृहीत विषय का चिन्तन करता है, अतः सर्वार्थग्राही है। तत्त्वार्थसूत्र में भी उसका विषय तो श्रुत कहा गया है और आचार्य अकलंक देव ने उसका अर्थ श्रुतज्ञान का विषयभूत पदार्थ किया है। श्री अभयदेव सूरि ने लिखा है कि श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा मनोज्ञ शब्द सुनने से जो सुख होता है, वह तो श्रोत्रेन्द्रिय-जनित है। किन्तु इष्टचिन्तन से जो सुख होता है, वह नोइन्द्रिय-जनित है। संवर-असंवर-सूत्र १५– छव्विहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा सोतिंदियसंवरे, (चक्खिदियसंवरे, घाणिंदियसंवरे, जिब्भिदियसंवरे,) फासिंदियसंवरे, णोइंदियसंवरे। .. संवर छह प्रकार का कहा गया है, जैसे १. श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, २. चक्षुरिन्द्रिय-संवर, ३. घ्राणेन्द्रिय-संवर, ४. रसनेन्द्रिय-संवर, ५. स्पर्शनेन्द्रिय-संवर, ६. नोइन्द्रिय-संवर (१५)। १६- छव्विहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा—सोतिंदियअसंवरे, (चक्खिदियअसंवरे, घाणिंदियअसंवरे, जिभिदियअसंवरे), फासिंदियअसंवरे, णोइंदियअसंवरे। असंवर छह प्रकार का कहा गया है, जैसे १. श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, २. चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, ३. घ्राणेन्द्रिय-असंवर, ४. रसनेन्द्रिय-असंवर, ५. स्पर्शनेन्द्रियअसंवर, ६. नोइन्द्रिय-असंवर (१६)। सात-असात-सूत्र १७– छविहे साते पण्णत्ते, तं जहा—सोतिंदियसाते, (चक्खिदियसाते, घाणिंदियसाते, श्रुतज्ञानविषयोऽर्थः श्रुतम्। विषयोऽनिन्द्रियस्य।.... अथवा श्रुतज्ञानं श्रुतम्। तदनिन्द्रियस्यार्थः प्रयोजनमिति यावत्, तत्पूर्वकत्वात्तस्य। (तत्त्वार्थवार्त्तिक, सू० २१ भाषा) श्रोत्रेन्द्रियद्वारेण मनोज्ञशब्द-श्रवणतो यत्सात-सुखं तच्छ्रोत्रेन्द्रियसातम्। तथा यदिष्टचिन्तनवतस्तन्नोइन्द्रियसातमिति। सूत्रकृताङ्गटीका पत्र ३३८ A)
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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