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पंचम स्थान द्वितीय उद्देश
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में ही आरोपण कर दिया जाता है। अतः पूरा प्रायश्चित्त नहीं कर सकने के कारण उसे अकृत्स्ना आरोपणा कहते हैं।
५. हाडहडा आरोपणा— जो प्रायश्चित्त प्राप्त हो, उसे शीघ्र ही देने को हाडहडा आरोपणा कहते हैं (१४९)। वक्षस्कारपर्वत-सूत्र
१५०- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे, णलिणकूडे, एगसेले।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी की उत्तर दिशा में पाँच वक्षस्कारपर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. माल्यवान्, २. चित्रकूट, ३. पक्ष्मकूट, ४. नलिनकूट, ५. एकशैल (१५०)।
१५१- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमणसे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी की दक्षिण दिशा में पांच वक्षस्कारपर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. त्रिकूट, २. वैश्रमणकूट, ३. अंजन, ४. मातांजन, ५. सौमनस (१५१)।
१५२– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा विजुप्पभे, अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत में सीतोदा महानदी की दक्षिण दिशा में पांच वक्षस्कारपर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. विद्युत्प्रभ, २. अंकावती, ३. पक्ष्मावती, ४. आशीविष, ५. सुखावह (१५२)।
१५३- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—चंदपव्वते, सूरपव्वते, णागपव्वते, देवपव्वते, गंधमादणे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी की उत्तर दिशा में पांच वक्षस्कारपर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. चन्द्रपर्वत, २. सूर्यपर्वत, ३. नागपर्वत, ४. देवपर्वत, ५. गन्धमादन (१५३)। महाद्रह-सूत्र
१५४- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पंच महद्दहा पण्णत्ता, तं जहा— णिसहदहे, देवकुरुदहे, सूरदहे, सुलसदहे, विजुप्पभदहे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में देवकुर नामक कुरुक्षेत्र में पांच महाद्रह कहे गये हैं, जैसे
१. निषधद्रह, २. देवकुरुद्रह, ३. सूर्यद्रह, ४. सुलसद्रह, ५. विद्युत्प्रभद्रह (१५४)।