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________________ पंचम स्थान — द्वितीय उद्देश ३. आचार्य-उपाध्याय का अवर्णवाद करता हुआ । ४. चतुर्वर्ण (चतुर्विध) संघ का अवर्णवाद करता हुआ। ५. तप और ब्रह्मचर्य के परिपाक से दिव्य गति को प्राप्त देवों का अवर्णवाद करता हुआ (१३३)। १३४- पंचहिं ठाणेहिं जीवा सुलभबोधियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा— अरहंताणं वण्णं वदमाणे, (अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स वण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणं वण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स वण्णं वदमाणे), विवक्क-तव- बंभचेराणं देवाणं वण्णं वदमाणे । पांच कारणों से जीव सुलभबोधि करने वाले कर्म का उपार्जन करता है, जैसे १. . अर्हन्तों का वर्णवाद (सद्-गुणोद्भावन) करता हुआ । २. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का वर्णवाद करता हुआ । ३. आचार्य - उपाध्याय का वर्णवाद करता हुआ । ४. चतुर्वर्ण संघ का वर्णवाद करता हुआ । ५. तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से दिव्यगति को प्राप्त देवों का वर्णवाद करता हुआ (१३४)। ४७९ प्रतिसंलीन-अप्रतिसंलीन- - सूत्र १३५ – पंच पडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा— सोइंदियपडिसंलीणे, ( चक्खिंदियपडिसंलीणे, घाणिदियपडिलीणे, जिब्भिंदियपडिसंलीणे), फासिंदियपडिसंलीणे । प्रतिसंलीन (इन्द्रिय-विषय- निग्रह करने वाला) पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. श्रोत्रेन्द्रिय-प्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ शब्दों में राग-द्वेष न करने वाला । २. चक्षुरिन्द्रिय-प्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ रूपों में ३. घ्राणेन्द्रिय-प्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ गन्ध में ४. रसनेन्द्रिय-प्रतिसंलीन—- शुभ-अशुभ रसों में राग-द्वेष न करने वाला। राग-द्वेष न करने वाला । राग-द्वेष न करने वाला । ५. स्पर्शनेन्द्रिय-प्रतिसंलीन— शुभ - अशुभ स्पर्शो में राग-द्वेष न करने वाला (१३५) । १३६ – पंच अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा— सोतिंदियअपडिसंलीणे, ( चक्खिंदियअपडिलीणे, घाणिंदियअपडिसंलीणे, जिब्भिंदियअपडिसंलीणे), फासिंदियअपडिसंलीणे । अप्रतिसंलीन (इन्द्रिय-विषय-प्रवर्तक) पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे १. श्रोत्रेन्द्रिय- अप्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ शब्दों में राग-द्वेष करने वाला । २. चक्षुरिन्द्रिय- अप्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ रूपों में राग-द्वेष करने वाला । ३. घ्राणेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ गन्ध में राग-द्वेष करने वाला। ४. रसनेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन— शुभ-अशुभ रसों में राग-द्वेष करने वाला । ५. स्पर्शनेन्द्रिय- अप्रतिसंलीन—- शुभ-अशुभ स्पर्शो में राग-द्वेष करने वाला (१३६)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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