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________________ ४७२ स्थानाङ्गसूत्रम् १. खित्तचित्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविजमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति। २. (दित्तचित्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविजमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति। ३. जक्खाइटे समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविजमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति। ४. उम्मायपत्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविजमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति।) ५. णिग्गंथीपव्वाइयए समणे णिग्गंथेहिं अविजमाणेहिं अचेलिए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णातिक्कमति। ___ पाँच कारणों से अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ सचेलक निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है, जैसे १. शोक आदि से विक्षिप्तचित्त कोई अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ अन्य निर्ग्रन्थों के नहीं होने पर सचेलक निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। २. हर्षातिरेक से दृप्तचित्त कोई अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ अन्य निग्रन्थों के नहीं होने पर सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। ३. यक्षाविष्ट कोई अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ अन्य निर्ग्रन्थों के नहीं होने पर सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। ४. वायु के प्रकोपादि से उन्माद को प्राप्त कोई अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ अन्य निर्ग्रन्थों के नहीं होने पर सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। ५. निर्ग्रन्थियों के द्वारा प्रव्रजित (दीक्षित) अचेलक श्रमण निर्ग्रन्थ अन्य निर्ग्रन्थों के नहीं होने पर सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है (१०८)। आस्व-सूत्र १०९-- पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा–मिच्छत्तं, अविरती, पमादो, कसाया, जोगा। आस्रव के पांच द्वार (कारण) कहे गये हैं१. मिथ्यात्व, २. अविरति, ३. प्रमाद, ४. कषाय, ५. योग (१०९)। ११०- पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा संमत्तं, विरती, अपमादो, अकसाइत्तं, अजोगित्तं। संवर के पांच द्वार कहे गये हैं, जैसे१. सम्यक्त्व, २. विरति, ३. अप्रमाद, ४. अकषायिता, ५. अयोगिता (११०)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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