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स्थानाङ्गसूत्रम्
ज्योतिष्क-सूत्र
५२– पंचविहा जोइसिया पण्णत्ता, तं जहा—चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, ताराओ। ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. चन्द्र, २. सूर्य, ३. ग्रह, ४. नक्षत्र, ५. तारा (५२)। देव-सूत्र
५३– पंचविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा भवियदव्वदेवा, णरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा।
देव पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. भव्य-द्रव्य-देव- भविष्य में होने वाला देव। २. नर-देव- राजा, महाराजा यावत् चक्रवर्ती। ३. धर्म-देव- आचार्य, उपाध्याय आदि। ४. देवाधिदेव- अर्हन्त तीर्थंकर।
५. भावदेव-देव-पर्याय में वर्तमान देव (५३)। परिचारणा-सूत्र
५४- पंचविहा परियारणा पण्णत्ता, तं जहा कायपरियारणा, फासपरियारणा, रूवपरियारणा, सद्दपरियारणा, मणपरियारणा।
परिचारणा (मैथुन या कुशील-सेवना) पांच प्रकार की कही गई है, जैसे१. काय-परिचारणा— मनुष्यों के समान मैथुन सेवन करना। २. स्पर्श-परिचारणा- स्त्री-पुरुष का परस्पर शरीरालिंगन करना। ३. रूप-परिचारणा— स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर रूप देखना। ४. शब्द-परिचारणा- स्त्री-पुरुष के काम-भाव से परस्पर गीतादि सुनना।
५. मनःपरिचारणा- स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर चिन्तन करना (५४)। अग्रमहिषी-सूत्र
५५- चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहाकाली, राती, रयणी, विजू, मेहा।
असुरकुमारराज चमर असुरेन्द्र की पांच अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. काली, २. रात्री, ३. रजनी, ४. विद्युत्, ५. मेघा (५५)।
५६– बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहासुंभा, णिसुंभा, रंभा, णिरंभा, मदणा।