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________________ ४२६ स्थानाङ्गसूत्रम् ऊंचाई से चार रनि-प्रमाण (चार हाथ के) कहे गये हैं (६३९)। गर्भ-सूत्र ६४०– चत्तारि दगगब्भा पण्णत्ता, तं जहा—उस्सा, महिया, सीता, उसिणा। उदक के चार गर्भ (जलवर्षा के कारण) कहे गये हैं, जैसे१. अवश्याय (ओस), २. मिहिका (कुहरा, धूंवर) ३. अतिशीतलता, ४. अतिउष्णता (६४०)। ६४१- चत्तारि दगगब्भा पण्णत्ता, तं जहा हेमगा, अब्भसंथडा, सीतोसिणा, पंचरूविया। संग्रहणी-गाथा माहे उ हेमगा गब्भा, फग्गुणे अब्भसंथडा । सीतोसिणा उ चित्ते, वइसाहे पंचरूविया ॥ १॥ पुनः उदक के चार गर्भ कहे गये हैं, जैसे१. हिमपात, २. मेघों से आकाश का आच्छादित होना, ३. अति शीतोष्णता ४. पंचरूपिता (वायु, बादल, गरज, बिजली और जल इन पांच का मिलना) (६४१)। १. माघ मास में हिमपात का उदक-गर्भ रहता है। फाल्गुन मास में आकाश के बादलों से आच्छादित रहने से उदक-गर्भ रहता है। चैत्र मास में अतिशीत और अतिउष्णता से उदक-गर्भ रहता है। वैशाख मास में पंचरूपिता से उदक-गर्भ रहता है। ६४२- चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता, तं जहा—इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, बिंबत्ताए। संग्रहणी-गाथा अप्पं सुक्कं बहुं ओयं, इत्थी तत्थ पजायति । अप्पं ओयं बहुं सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायति ॥ १॥ दोण्हंपि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावे णपुंसओ ।। इत्थी ओय-समायोगे, बिंबं तत्थ पजायति ॥ २॥ मनुष्यनी स्त्री के गर्भ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे- . १. स्त्री के रूप में, २. पुरुष के रूप में, ३. नपुंसक के रूप में, ४. बिम्ब रूप में (६४२)। १. जब गर्भ-काल में शुक्र (वीर्य) अल्प और ओज (रज) अधिक होता है, तब उस गर्भ से स्त्री उत्पन्न होती है। यदि ओज अल्प और शुक्र अधिक होता है, तो उस गर्भ से पुरुष उत्पन्न होता है। २. जब रक्त (रज) और शुक्र इन दोनों की समान मात्रा होती है, तब नपुंसक उत्पन्न होता है। वायु विकार के कारण स्त्री के ओज (रक्त) के समायोग से (जम जाने से) बिम्ब उत्पन्न होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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