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________________ ४०९ चतुर्थ स्थान – चतुर्थ उद्देश विसीयति। पुनः तैराक चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. कोई तैराक समुद्र को पार करके पुनः समुद्र को पार करने में अर्थात् समुद्र में तिरने के समान एक महान् कार्य करके दूसरे महान् कार्य को करने में विषाद को प्राप्त होता है। २. कोई तैराक समुद्र को पार करके (महान् कार्य करके) गोष्पद को पार करने में (सामान्य कार्य करने में) विषाद को प्राप्त होता है। ३. कोई तैराक गोष्पद को पार करके समुद्र को पार करने में विषाद को प्राप्त होता है। ४. कोई तैराक गोष्पद को पार करके पुनः गोष्पद को पार करने में विषाद को प्राप्त होता है (५८९)। पूर्ण-तुच्छ-सूत्र ५९०- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा पुण्णे णाममेगे पुण्णे, पुण्णे णाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे। __एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुण्णे णाममेगे पुण्णे, पुण्णे णाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे। कुम्भ (घट) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पूर्ण और पूर्ण— कोई कुम्भ आकार से परिपूर्ण होता है और घी आदि द्रव्य से भी परिपूर्ण होता है। २. पूर्ण और तुच्छ— कोई कुम्भ आकार से तो परिपूर्ण होता है, किन्तु घी आदि द्रव्य से तुच्छ (रिक्त) होता ३. तुच्छ और पूर्ण— कोई कुम्भ आकार से अपूर्ण किन्तु घृतादि द्रव्यों से परिपूर्ण होता है। ४. तुच्छ और तुच्छ— कोई कुम्भ घी आदि से भी तुम्नक (रिक्त) होता है और आपार से भी तुच्छ (अपूर्ण) होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. पूर्ण और पूर्ण— कोई पुरुष आकार से और जाति-कुलादि से पूर्ण होता है और ज्ञानादि गुणों से भी पूर्ण होता है। २. पूर्ण और तुच्छ— कोई पुरुष आकार और जाति-कुलादि से पूर्ण होता है, किन्तु ज्ञानादि गुणों से तुच्छ (रिक्त) होता है। ३. तुच्छ और पूर्ण— कोई पुरुष आकार और जाति आदि से तुच्छ होता है, किन्तु ज्ञानादि गुणों से पूर्ण होता ४. तुच्छ और तुच्छ— कोई पुरुष आकार और जाति आदि से भी तुच्छ होता है और ज्ञानादि गुणों से भी तुच्छ होता है (५९०)। ___ ५९१- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे णाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे तुच्छोभासी।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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