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________________ ४०५ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश ३. भय की बात सुनने से, ४. भय का सोच-विचार करते रहने से (५८०)। ५८१-चउहिं ठाणेहिं मेहुणसण्णा समुप्पजति, तं जहा चितमंससोणिययाए, मोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए तदट्ठोवओगेणं। मैथुनसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है, जैसे१. शरीर में अधिक मांस, रक्त वीर्य का संचय होने से, २. [वेद] मोहनीय कर्म के उदय से, ३. मैथुन की बात सुनने से, ४. मैथुन में उपयोग लगाने से (५८१)। ५८२- चउहिं ठाणेहिं परिग्गहसण्णा समुप्पजति, तं जहा—अविमुत्तयाए, लोभवेयणिजस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं। परिग्रहसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है, जैसे१. परिग्रह का त्याग न होने से, २. [लोभ] मोहनीय कर्म के उदय से, ३. परिग्रह को देखने से उत्पन्न होने वाली तदविषयक बद्धि से. ४. परिग्रह सम्बन्धी विचार करते रहने से (५८२)। विवेचन- उक्त चारों सूत्रों में चारों संज्ञा की उत्पत्ति के चार-चार कारण बताये गये हैं। इनमें से क्षुधा या असातावेदनीय कर्म का उदय आहारसंज्ञा के उत्पन्न होने में अन्तरंग कारण है, भय वेदनीयकर्म का उदय भय संज्ञा के उत्पन्न होने में अन्तरंग कारण है। इसी प्रकार वेदमोहनीय कर्म का उदय मैथुनसंज्ञा का और लोभमोहनीय का उदय परिग्रहसंज्ञा का अन्तरंग कारण है। शेष तीन-तीन उक्त संज्ञाओं के उत्पन्न होने में बहिरंग कारण हैं। गोम्मटसार जीवकाण्ड में भी प्रत्येक संज्ञा के उत्पन्न होने में इन्हीं कारणों का निर्देश किया गया है। वहाँ उदय के स्थान पर उदीरणा का कथन है जो यहाँ भी समझा जा सकता है तथा यहाँ चारों संज्ञाओं के उत्पन्न होने का तीसरा कारण मति' अर्थात् इन्द्रिय प्रत्यक्ष मतिज्ञान कहा है। गो. जीवकाण्ड में इसके स्थान पर आहारदर्शन, अतिभीमदर्शन, प्रणीत (पौष्टिक) रस भोजन और उपकरण-दर्शन को क्रमश: चारों संज्ञाओं का कारण माना गया है। काम-सूत्र ५८३— चउव्विहा कामा पण्णत्ता, तं जहा—सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोद्दा। सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं, रोहा कामा णेरइयाणं। काम-भोग चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. श्रृंगार काम, २. करुण काम, ३. बीभत्स काम, ४. रौद्र काम। १. देवों का काम शृंगार-रस-प्रधान होता है। २. मनुष्यों का काम करुण-रस-प्रधान होता है। ३. तिर्यग्योनिक जीवों का काम बीभत्स-रस-प्रधान होता है। ४. नारक जीवों का काम रौद्र-रस-प्रधान होता है (५८३)। १. गो० जीवकाण्ड गाथा १३४-१३७
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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