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________________ ४०२ स्थानाङ्गसूत्रम् प्रव्रज्या-सूत्र ५७१-घउव्विहा पव्वजा पण्णत्ता, तं जहा—इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहओलोगपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा। प्रव्रज्या (निर्ग्रन्थ दीक्षा) चार प्रकार की कही गई है, जैसे१.इहलोकप्रतिबद्धा- इस लोक-सम्बन्धी सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। २. परलोकप्रतिबद्धा— परलोक-सम्बन्धी सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। ३.लोकद्वयप्रतिबद्धा— दोनों लोकों में सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। भप्रेतिबद्धा- किसी भी प्रकार के सांसारिक सुख की कामना से रहित कर्म-विनाशार्थ ली जाने वाली प्रव्रज्या (५७१)। ५७२- चउम्विहा पव्वजा पण्णत्ता, तं जहा—पुरओपडिबद्धा मग्गओपडिबद्धा, दुहओपडिबखा, अप्पडिबद्धा। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे १. पुरतःप्रतिबद्धा— प्रव्रजित होने पर आहारादि अथवा शिष्यपरिवारादि की कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। २. मार्गतः (पृष्ठतः) प्रतिबद्धा— मेरी प्रव्रज्या से मेरे वंश, कुल और कुटुम्बादि की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इस कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। ३. द्वयप्रतिबद्धा- पुरतः और पृष्ठतः उक्त दोनों प्रकार की कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। ४. अप्रतिबद्धा— उक्त दोनों प्रकार की कामनाओं से रहित कर्मक्षयार्थ ली जाने वाली प्रव्रज्या (५७२)। ५७३- चउव्विहा पव्वजा पण्णत्ता, तं जहा ओवायपव्वजा, अक्खातपव्वजा, संगारपव्यज्जा, विहगगइपव्वज्जा। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. अवपात प्रव्रज्या- सद्-गुरुओं की सेवा से प्राप्त होने वाली दीक्षा। २. आख्यात-प्रव्रज्या- दूसरों के कहने से ली जाने वाली दीक्षा। ३. संगर प्रव्रज्या- तुम दीक्षा लोगे तो मैं भी दीक्षा लूंगा, इस प्रकार परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होने से ली जाने वाली दीक्षा। ___४. विहगगति प्रव्रज्या— परिवारादि से अलग होकर और एकाकी देशान्तर में जाकर ली जाने वाली दीक्षा (५७३)। ५७४- चउव्विहा पव्वजा पण्णत्ता, तं जहा—तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता, परिपुयावइत्ता। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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