SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९६ स्थानाङ्गसूत्रम् पक्षी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. चर्मपक्षी- चमड़े के पांखों वाले चमगीदड़ आदि। २. रोमपक्षी- रोममय पांखों वालों हंस आदि। ३. समुद्गपक्षी- जिसके पंख पेटी के समान खुलते और बन्द होते हैं। ४. विततपक्षी—जिसके पंख फैले रहते हैं (५५१)। विवेचन— चर्म पक्षी और रोम पक्षी तो मनुष्य क्षेत्र में पाये जाते हैं, किन्तु समुद्गपक्षी और विततपक्षी मनुष्यक्षेत्र से बाहरी द्वीपों और समुद्रों में पाये जाते हैं। ५५२– चउब्विहा खुड्डपाणा पण्णत्ता, तं जहा—बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, संमुच्छिमपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिया। क्षुद्र प्राणी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. द्वीन्द्रिय जीव, २. त्रीन्द्रिय जीव, ३. चतुरिन्द्रिय जीव, ४. सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव (५५२)। विवेचन-जिनकी अग्रिम भव में मुक्ति संभव नहीं, ऐसे प्राणी क्षुद्र कहलाते हैं। भिक्षुक-सूत्र ५५३– चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा—णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा—णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता। पक्षी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. निपतिता, न परिव्रजिता- कोई पक्षी अपने घोंसले से नीचे उतर सकता है, किन्तु (बच्चा होने से) उड़ नहीं सकता। २. परिव्रजिता, न निपतिता- कोई पक्षी अपने घोंसले से उड़ सकता है, किन्तु (भीरु होने से) नीचे नहीं उतर सकता। ३. निपतिता भी, परिव्रजिता भी— कोई समर्थ पक्षी अपने घोंसले से नीचे भी उड़ सकता है और ऊपर भी उड़ सकता है। ४. न निपतिता, न परिव्रजिता— कोई पक्षी (अतीव बालावस्था वाला होने के कारण) अपने घोंसले से न नीचे ही उतर सकता है और न ऊपर ही उड़ सकता है। इसी प्रकार भिक्षुक भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. निपतिता, न परिव्रजिता— कोई भिक्षुक भिक्षा के लिए निकलता है, किन्तु रुग्ण होने आदि के कारण अधिक घूम नहीं सकता। २. परिव्रजिता, न निपतिता- कोई भिक्षुक भिक्षा के लिए घूम सकता है, किन्तु स्वाध्यायादि में संलग्न रहने से भिक्षा के लिए निकल नहीं सकता।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy