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________________ चतुर्थ स्थान— चतुर्थ उद्देश ३१३ गोल-सूत्र ५४५– चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा मधुसित्थगोले, जउगोले, दारुगोले, मट्टियागोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—मधुसित्थगोलसमाणे, जउगोलसमाणे, दारुगोलसमाणे, मट्टियागोलसमाणे। गोले चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. मधुसिक्थगोला, २. जतुगोला, ३. दारुगोला, ४. मृत्तिकागोला। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. मधुसिक्थगोलासमान— मधुसिक्थ (मोम) के बने गोले के समान कोमल हृदयवाला पुरुष। २. जतुगोला समान— लाख के गोले के समान किंचित् कठिन हृदय वाला, किन्तु जैसे अग्नि के सान्निध्य से जतुगोला शीघ्र पिघल जाता है, इसी प्रकार गुरु-उपदेशादि से शीघ्र कोमल होने वाला पुरुष । ३. दारुगोला समान— जैसे लाख के गोले से लकड़ी का गोला अधिक कठिन होता है, उसी प्रकार कठिनतर हृदय वाला पुरुष। ४. मृत्तिकागोला समान— जैसे मिट्टी का गोला (आग में पकने पर) लकड़ी से भी अधिक कठिन होता है उसी प्रकार कठिनतम हृदय वाला पुरुष (५४५)। ५४६- चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा अयगोले, तउगोले, तंबगोले, सीसगोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अयगोलसमाणे, जाव (तउगोलसमाणे, तंबगोलसमाणे), सीसगोलसमाणे। पुनः गोले चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. अयोगोल (लोहे का गोला)।२. त्रपुगोल (रांगे का गोला)। ३. ताम्रगोल (तांबे का गोला)। ४. शीशगोल (शीशे का गोला)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अयोगोलसमान— लोहे के गोले के समान गुरु (भारी) कर्म वाला पुरुष। २. त्रपुगोलसमान— रांगे के गोले के समान गुरुतर कर्म वाला पुरुष । ३. ताम्रगोलसमान— ताँबे के गोले के समान गुरुतम कर्म वाला पुरुष । ४. शीशगोलसमान- सीसे के गोले के समान अत्यधिक गुरु कर्म वाला पुरुष (५४६) । विवेचन- अयोगोल आदि के समान चार प्रकार के पुरुषों की उक्त व्याख्या मन्द, तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम कषायों के द्वारा उपार्जित कर्म-भार की उत्तरोतर अधिकता से की गई है। टीकाकार ने पिता, माता, पुत्र और स्त्री-सम्बन्धी स्नेह भार से भी करने की सूचना की है। पुरुष का स्नेह पिता की अपेक्षा माता से अधिक होता है, माता की अपेक्षा पुत्र से और भी अधिक होता है तथा स्त्री से और भी अधिक होता है। इस स्नेह-भार की अपेक्षा पुरुष चार प्रकार के होते हैं, ऐसा अभिप्राय जानना चाहिए। अथवा पिता आदि परिवार के प्रति राग की मन्दतातीव्रता की अपेक्षा यह कथन समझना चाहिए।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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