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________________ चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश इनमें से प्रथम के ६ भेद, द्वितीय के ७ भेद, तृतीय के ७ भेद और चौथे के ५ भेद न्यायशास्त्र में बताये गये हैं ।" संख्यान-सूत्र ५०५ - चउव्विहे संखाणे पण्णत्ते, तं जहा— परिकम्मं, ववहारे, संख्यान (गणित) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. परिकर्म- संख्यान — जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि गणित । २. व्यवहार - संख्यान —— लघुतम, महत्तम, भिन्न, मिश्र आदि गणित । ३. रज्जु - संख्यान —— राजुरूप क्षेत्रगणित । ४. राशि - संख्यान — त्रैराशिक, पंचराशिक आदि गणित (५०५) । अन्धकार- उद्योत-सूत्र १. ५०६ - अहोलोगे णं चत्तारि अंधगारं करेति, तं जहा———णरगा, णेरइया, पावाई कम्माई, असुभा पोग्गला । अधोलोक में चार पदार्थ अन्धकार करते हैं, जैसे— १. नरक, २. नैरयिक, ३. पापकर्म, ४. अशुभ पुद्गल (५०६) । रज्जू, रासी । ५०७ - तिरियलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेति, तं जहा— चंदा, सूरा, मणी, जोती । तिर्यक्लोक में चार पदार्थ उद्योत करते हैं, जैसे १. चन्द्र, २. सूर्य, ३. मणि, ४. ज्योति (अग्नि) (५०७)। ॥ चतुर्थ स्थान का तृतीय उद्देश समाप्त ॥ ३७५ ५०९ – उड्डलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेति, तं जहा— देवा, देवीओ, विमाणा, आभरणा । ऊर्ध्वलोक में चार पदार्थ उद्योत करते हैं, जैसे— १. देव, २ . देवियां, ३. विमान, ४. देव-देवियों के आभरण (आभूषण) (५०८)। देखिए प्रमाणनयतत्त्वालोक, परिच्छेद ३
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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