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________________ चतुर्थ स्थान– तृतीय उद्देश ३६५ पालन करता है। - ३. कोई पुरुष शृगालवृत्ति से निष्क्रान्त होता है, किन्तु सिंहवृत्ति से विचरता है। ४. कोई पुरुष शृगालवृत्ति से निष्क्रान्त होता है और शृगालवृत्ति से ही विचरता है (४८०)।] सम-सूत्र ४८१- चत्तारि लोगे समा पण्णत्ता, तं जहा—अपइट्ठाणे णरए, जंबुद्दीवे दीवे, पालए जाणविमाणे, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे। लोक में चार स्थान समान कहे गये हैं, जैसे१. अप्रतिष्ठान नरक– सातवें नरक के पांच नारकावासों में से मध्यवर्ती नारकावास। २. जम्बूद्वीप नामक मध्यलोक का सर्वमध्यवर्ती द्वीप। ३. पालकयान-विमान- सौधर्मेन्द्र का यात्रा-विमान। ४. सर्वार्थसिद्ध महाविमान— पंच अनुत्तर विमानों में मध्यवर्ती विमान। ये चारों ही एक लाख योजन विस्तार वाले हैं (४८१)। ४८२ – चत्तारि लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं पण्णत्ता, तं जहा सीमंतए णरए, समयक्खेत्ते, उडुविमाणे, इसीपब्भारा पुढवी। लोक में चार सम (समान विस्तारवाले), सपक्ष (समान पार्श्ववाले), और सप्रतिदिश (समान दिशा और विदिशा वाले) कहे गये हैं, जैसे १. सीमन्तक नरक- पहले नरक का मध्यवर्ती प्रथम नारकावास। २. समयक्षेत्र– काल के व्यवहार से संयुक्त मनुष्य क्षेत्र —अढाई द्वीप। ३. उडुविमान- सौधर्म कल्प के प्रथम प्रस्तट का मध्यवर्ती विमान। ४. ईषत्प्राग्भार-पृथ्वी- लोक के अग्रभाग पर अवस्थित भूमि, (सिद्धालय जहाँ पर सिद्ध जीव निवास करते हैं)। यह चारों ही पैंतालीस लाख योजन विस्तार वाले हैं (४८२)। विवेचन– दिगम्बर शास्त्रों में ईषत्प्राग्भार पृथ्वी को एक रज्जू चौड़ी, सात रज्जू लम्बी और आठ योजन मोटी कहा गया है। हाँ, उसके मध्य में स्थित छत्राकार गोल और मनुष्य-क्षेत्र के समान पैंतालीस लाख योजन विस्तार वाला, सिद्धक्षेत्र बताया गया है, जहाँ पर कि सिद्ध जीव अनन्त सुख भोगते हुए रहते हैं।' तिहुवणमुड्डारूढा ईसिपभारा धरट्ठमी रुंदा। दिग्घा इगि सगरजू अडजोयणपमिद बाहल्ला ॥ ५५६ ॥ तिम्मझे रुप्पमयं छत्तायारं मणुस्समहिवासं । सिद्धक्खेत्तं मण्झडवेहं कमहीण वेहुलयं ॥ ५५७ ॥ उत्ताणट्ठियमंते पत्तं व तणु तदुवरि तणुवादे । अट्ठगुणड्डा सिद्धा चिटुंति अणंतसुहत्तिता ॥ ५५८॥ - त्रिलोकसार, वैमानिक लोकाधिकार
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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