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________________ चतुर्थ स्थान – तृतीय उद्देश ४२०-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा धम्मं णाममेगे जहति णो गणसंठिति, गणसंठितिं णाममेगे जहति णो धम्मं, एगे धम्मवि जहति गणसंठितिवि, एगे णो धम्मं जहति णो गणसंठिति। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. धर्म-जही, न गणसंस्थिति-जही- कोई पुरुष धर्म का त्याग कर देता है, किन्तु गण का निवास और मर्यादा नहीं त्यागता है। २. गणसंस्थिति-जही, न धर्म-जही— कोई पुरुष गण का निवास और मर्यादा का त्याग कर देता है, किन्तु धर्म का त्याग नहीं करता। ३. धर्म-जही, गणसंस्थिति-जही— कोई पुरुष धर्म का भी त्याग कर देता है और गण का निवास और मर्यादा का भी त्याग कर देता है। ४. न धर्म-जही, न गणसंस्थिति-जही— कोई पुरुष न धर्म का ही त्याग करता है और न गण का निवास और मर्यादा का ही त्याग करता है (४२०)। ४२१- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पियधम्मे णाममेगे णो दढधम्मे, दढधम्मे णाममेगे णो पियधम्मे, एगे पियधम्मेवि दढधम्मेवि, एगे णो पियधम्मे णो दढधम्मे। .. पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. प्रियधर्मा, न दृढधर्मा—किसी पुरुष को धर्म तो प्रिय होता है, किन्तु वह धर्म में दृढ़ नहीं रहता। २. दृढ़धर्मा, न प्रियधर्मा— कोई पुरुष स्वीकृत धर्म के पालन में दृढ़ तो होता है, किन्तु अन्तरंग से उसे वह धर्म प्रिय नहीं होता। __३. प्रियधर्मा, दृढ़धर्मा— किसी पुरुष को धर्म प्रिय भी होता है और वह उसके पालन में भी दृढ़ होता है। ४. न प्रियधर्मा, न दृढ़धर्मा— किसी पुरुष को न धर्म प्रिय होता है और न उसके पालन में ही दृढ़ होता है (४२१)। आचार्य-सूत्र ४२२–चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा–पव्वावणायरिए णाममेगे णो उवट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए णाममेगे णो पव्वावणायरिए, एगे पव्वावणायरिएवि उवट्ठावणायरिएवि, एगे णो' पव्वावणायरिए णो उवट्ठावणायरिए धम्मायरिए। आचार्य चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. प्रव्राजनाचार्य, न उपस्थापनाचार्य— कोई आचार्य प्रव्रज्या (दीक्षा) देने वाले होते हैं, किन्तु उपस्थापना (महाव्रतों की आरोपणा करने वाले) नहीं होते। २. उपस्थापनाचार्य, न प्रव्राजनाचार्य— कोई आचार्य महाव्रतों की उपस्थापना करने वाले होते हैं, किन्तु प्रव्राजनाचार्य नहीं होते। ३. प्रव्राजनाचार्य, उपस्थापनाचार्य- कोई आचार्य दीक्षा देने वाले भी होते हैं और उपस्थापना करने वाले भी होते हैं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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