SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३५] चूर्णि०० आदि में भी इन स्वप्नों का उल्लेख हुआ है। ये स्वप्न व्याख्या-साहित्य की दृष्टि से प्रथम वर्षावास में देखे गये थे। बौद्ध साहित्य में भी तथागत-बुद्ध के द्वारा देखे गये पांच स्वप्नों का वर्णन मिलता है।१०८ जिस समय वे बोधिसत्त्व थे। बुद्धत्व की उपलब्धि नहीं हुई थी। उन्होंने पाँच स्वप्न देखे थे। वे इस प्रकार हैं (१) यह महान् पृथ्वी उनकी विराट् शय्या बनी हुयी थी। हिमाच्छादित हिमालय उनका तकिया था। पूर्वी समुद्र बायें हाथ से और पश्चिमी समुद्र दायें हाथ से, दक्षिणी समुद्र दोनों पाँवों से ढका था। (२) उनकी नाभि से तिरिया नामक तृण उत्पन्न हुए और उन्होंने आकाश को स्पर्श किया। (३) कितने ही काले सिर श्वेत रंग के जीव पाँव से ऊपर की ओर बढ़ते-बढ़ते घुटनों तक ढंक कर खड़े हो गये। (४) चार वर्ण वाले चार पक्षी चारों विभिन्न दिशाओं से आये और उनके चरणारविन्दों में गिरकर सभी श्वेत वर्ण वाले हो गये। (५) तथागत बुद्ध गूथ पर्वत पर ऊपर चढ़ते हैं और चलते समय वे पूर्ण रूप से निर्लिप्त रहते हैं। इन पाँचों स्वप्नों की फलश्रुति इस प्रकार थी।(१) अनुपम सम्यक् संबोधि को प्राप्त करना। (२) आर्य आष्टांगिक मार्ग का ज्ञान प्राप्त कर वह ज्ञान देवों और मानवों तक प्रकाशित करना। (३) अनेक श्वेत वस्त्रधारी प्राणांत होने तक तथागत के शरणागत होना। (४) चारों वर्ण वाले मानवों द्वार तथागत द्वारा दिये गये धर्म-विनय के अनुसार प्रव्रजित होकर मुक्ति का साक्षात्कार करना। (५) तथागत चीवर, भिक्षा, आसन, औषध आदि प्राप्त करते हैं। तथापि वे उनमें अमूर्च्छित रहते हैं और मुक्तप्रज्ञ होकर उसका उपभोग करते हैं। गहराई से चिन्तन करने पर भगवान् महावीर और तथागत बुद्ध दोनों के स्वप्न देखने में शब्द-साम्य तो नहीं है, किन्तु दोनों के स्वप्न की पृष्ठभूमि एक है। भविष्य में उन्हें विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि होगी और वे धर्म का प्रवर्तन करेंगे। प्रस्तुत स्थान से आगम-ग्रन्थों की विशिष्ट जानकारी भी प्राप्त होती है। भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों के समय ऐसी विशिष्ट घटनाएं घटीं, जो आश्चर्य के नाम से विश्रुत हैं। विश्व में अनेक आश्चर्य हैं । किन्तु प्रस्तुत आगम में आये हुये आश्चर्य उन आश्चर्यों से पृथक् हैं । इस प्रकार दशवें स्थान में ऐसी अनेक घटनाओं का वर्णन है जो ज्ञान-विज्ञान, इतिहास आदि से सम्बन्धित है। जिज्ञासुओं को मूल आगम का स्वाध्याय करना चाहिए, जिससे उन्हें आगम के अनमोल रत्न प्राप्त हो सकेंगे। दार्शनिक-विश्लेषण हम पूर्व ही यह बता चुके हैं कि विविध-विषयों का वर्णन स्थानांग में है। क्या धर्म और क्या दर्शन. ऐसा कौनसा विषय है जिसका सूचन इस आगम में न हो। आगम में वे विचार भले ही बीज रूप में हों। उन्होंने बाद में चलकर व्याख्यासाहित्य में विराट रूप धारण किया। हम यहाँ अधिक विस्तार में न जाकर संक्षेप में स्थानांग में आये हुये दार्शनिक विषयों पर चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। मानव अपने विचारों को व्यक्त करने के लिये भाषा का प्रयोग करता है। वक्ता द्वारा प्रयुक्त शब्द का नियत अर्थ क्या है? इसे ठीक रूप से समझना "निक्षेप" है। दूसरे शब्दों में शब्दों का अर्थों में और अर्थों का शब्दों में आरोप करना "निक्षेप" कहलाता है।०९ निक्षेप का पर्यायवाची शब्द "न्यास" भी है।९० स्थानांग में निक्षेपों को "सर्व" पर घटित किया है। सर्व के चार प्रकार हैं—नामसर्व, स्थापनासर्व, आदेशसर्व और निरवशेषसर्व। यहाँ पर द्रव्य आदेश सर्व कहा है। सर्व शब्द का १०७. आवश्यकचूर्णि २७० १०८. अंगुत्तरनिकाय, द्वितीय भाग, पृ. ४२५ से ४२७ १०९. णिच्छए णिण्णए खिवदि त्ति णिक्खेओ-धवला षट्खण्डागम, पु. १, पृ. १० ११०. नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः १११. चत्तारि सव्वा पन्नता–नामसव्वए, ठवणसव्वए, आएससव्वए, निरवसेससव्वए। -तत्त्वार्थसूत्र १/५ स्थानांग २९९
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy