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________________ चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश क्रोध-सूत्र ३५४— चत्तारि राईओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पव्वयराई, पुढविराई, वालुयराई, उदगराई । वामेव चव्वि कोहे पण्णत्ते, तं जहा - पव्वयराइसमाणे, पुढविराइसमाणे, वालुयराइसमाणे, उदगराइसमाणे । १. पव्वयराइसमाणं कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, णेरइएस उववज्जति । २. पुढविराइसमाणं कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. वालुयराइसमाणं कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. उदगराइसमाणं कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति । राजि (रेखा) चार प्रकार की होती है, जैसे १. पर्वतराजि, २. पृथिवीराजि, ३. वालुकाराजि, ४. उदकराजि । इसी प्रकार क्रोध चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. पर्वतराजि समान —— अनन्तानुबन्धी क्रोध | २. पृथिवीराजि समान - अप्रत्याख्यानावरण क्रोध । ३. वालुकाराजि समान —— प्रत्याख्यानावरण क्रोध । ४. उदकराजि - समान — संज्वलन क्रोध । १. पर्वत - राजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव काल करे तो नारकों में उत्पन्न होता है। २. पृथिवी - राजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव काल करे तो तिर्यग्योनिक जीवों में उत्पन्न होता है। ३. वालुका-राजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है । ४. उदक- राजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है (३५४) । विवेचन — उदक (जल) की रेखा जैसे तुरन्त मिट जाती है, उसी प्रकार अन्तर्मुहूर्त के भीतर उपशान्त होने वाले क्रोध को संज्वलन क्रोध कहा गया है । वालु में बनी रेखा जैसे वायु आदि के द्वारा एक पक्ष के भीतर मिट जाती है, इसी प्रकार पाक्षिक प्रतिक्रमण के समय तक शान्त हो जाने वाले क्रोध को प्रत्याख्यानावरण क्रोध कहा गया है। पृथ्वी की ग्रीष्म ऋतु में हुई रेखा वर्षा होने पर मिट जाती है, इसी प्रकार अधिक से अधिक जिस क्रोध का संस्कार एक वर्ष तक रहे और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करते हुए शान्त हो जाय, वह अप्रत्याख्यानावरण क्रोध कहा गया है। जिस क्रोध का संस्कार एक वर्ष के बाद भी दीर्घकाल तक बना रहे, उसे अनन्तानुबन्धी क्रोध कहा गया है। यही काल चारों जाति के मान, माया और लोभ के विषय में जानना चाहिए।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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