SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९२ १. शब्दापाती, २ . विकटापाती, ३. गन्धापाती, ४. माल्यवत्पर्याय । उन पर पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महर्द्धिक चार देव रहते हैं, जैसे— १. स्वाति, २. प्रभास, ३. अरुण, ४. पद्म (३०७) । स्थानाङ्गसूत्रम् महाविदेह-सूत्र ३०८— जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाविदेह क्षेत्र चार प्रकार का अर्थात् चार भागों में विभक्त कहा गया है, जैसे— १. पूर्वविदेह, २. अपरविदेह, ३. देवकुरु, ४. उत्तरकुरु (३०८) । पर्वत-सूत्र ३०९ - सव्वे विणं णिसढणीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता । सभी निषध और नीलवंत वर्षधर पर्वत ऊपर ऊंचाई से चार सौ योजन और भूमि - गत गहराई से चार सौ कोश कहे गये हैं (३०९) । ३१०—– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा — चित्तकूडे, पम्हकूडे, णलिणकूडे, एगसेले। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी के उत्तरी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे— १. चित्रकूट, २. पद्मकूट, ३. नलिनकूट, ४. एकशैलकूट (३१०) । ३११– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहातिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मातंजणे । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी के दक्षिणी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे— १. त्रिकूट, २. वैश्रमणकूट, ३. अंजनकूट, ४. मातांजनकूट (३११) । ३१२– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणदीए दाहिणकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा— अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी के दक्षिणी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे १. अंकावती, २. पक्ष्मावती, ३. आशीविष, ४. सुखावह (३१२) । ३१३ – जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणदीए उत्तरकूले चत्तारि
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy