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स्थानाङ्गसूत्रम्
४. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता- कोई अग्नि-शिखा दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है। इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. वामा और वामावर्ता- कोई स्त्री वाम और वामावर्ता होती है। २. वामा और दक्षिणावर्ता- कोई स्त्री वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है। ३. दक्षिणा और वामावर्ता— कोई स्त्री दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। ४. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता- कोई स्त्री दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है (२७१)।
२७२- चत्तारि वायमंडलिया पण्णत्ता, तं जहा—वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता।
एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता।
वात-मण्डलिकाएं चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१ वामा और वामावर्ता- कोई वात-मण्डलिका वाम और वामावर्त होती है। २. वामा और दक्षिणावर्ता- कोई वात-मण्डलिका वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है। ३. दक्षिणा और वामावर्ता- कोई वात-मण्डलिका दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। ४. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता- कोई वात-मण्डलिका दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है। इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. वामा और दक्षिणावर्ता- कोई स्त्री वाम और वामावर्त होती है। २. वामा और दक्षिणावर्ता- कोई स्त्री वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है। ३. दक्षिणा और वामावर्ता- कोई स्त्री, दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। ४. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता- कोई स्त्री दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है (२७२)।
विवेचन– उपर्युक्त तीन सूत्रों में क्रमशः धूम-शिखा, अग्निशिखा और वात-मण्डलिका के चार-चार प्रकारों का, तथा उनके दार्टान्त स्वरूप चार-चार प्रकार की स्त्रियों का निरूपण किया गया है। जैसे धूम-शिखा मलिन स्वभाववाली होती है, उसी प्रकार मलिन स्वभाव की अपेक्षा स्त्रियों के चारों भागों को घटित करना चाहिए। इसी प्रकार अग्नि-शिखा के सन्ताप-स्वभाव और वात-मण्डलिका के चपल-स्वभाव के समान स्त्रियों की सन्तापजनकता और चंचलता स्वभावों की अपेक्षा चार-चार भंगों को घटित करना चाहिए।
२७३- चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा—वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते।
वनषण्ड (उद्यान) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. वाम और वामावर्त— कोई वनषण्ड वाम और वामावर्त होता है। २. वाम और दक्षिणावर्त— कोई वनषण्ड वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होता है।