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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् २०२ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— दीणे णाममेगे दीणववहारे, दीणे णाममेगे अदीणववहारे, अदीणे णाममेगे दीणववहारे, अदीणे णाममेगे अदीणववहारे । २५४ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन और दीन व्यवहार— कोई पुरुष दीन है और दीन व्यवहार वाला होता है। २. दीन और अदीन व्यवहार कोई पुरुष दीन होकर भी दीन व्यवहार वाला नहीं होता। ३. अदीन और दीन व्यवहार — कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन व्यवहार वाला होता है। ४. अदीन और अदीन व्यवहार— कोई पुरुष न दीन है और अदीन व्यवहार वाला होता है ( २०२) । २०३ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — दीणे णाममेगे दीणपरक्कमे, दीणे णाममेगे अदीणपरक्कमे, अदीणे णाममेगे दीणपरक्कमे, अदीणे णाममेगे अदीणपरक्कमे । पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन और दीनपराक्रम— कोई पुरुष दीन है और दीन पराक्रमवाला भी होता है। २. दीन और अदीनपराक्रम— कोई पुरुष दीन होकर भी दीन पराक्रमवाला नहीं होता । ३. अदीन और दीनपराक्रम कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन पराक्रमवाला होता है। ४. अदीन और अदीनपराक्रम कोई पुरुष न दीन है और न दीन पराक्रमवाला होता है ( २०३) । २०४— चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — दीणे णाममेगे दीणवित्ती, दीणे णाममेगे अदीणवित्ती, अदीणे णाममेगे दीणवित्ती, अदीणे णाममेगे अदीणवित्ती । पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन और दीनवृत्ति— कोई पुरुष दीन है और दीनवृत्ति (दीन जैसी आजीविका) वाला होता है। २. दीन और अदीनवृत्ति— कोई पुरुष दीन होकर भी दीनवृत्तिवाला नही होता है । ३. अदीन और दीनवृत्ति— कोई पुरुष दीन न होकर भी दीनवृत्तिवाला होता हैं। ४. अदीन और अदीनवृत्ति—— कोई पुरुष न दीन है और न दीनवृत्तिवाला होता है ( २०४) । २०५ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणजाती, दीणे णाममेगे अदीणजाती, अदीणे णाममेगे दीणजाती, अदीणे णाममेगे अदीणजाती । १. पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये है, जैसे १. दीन और दीनजाति — कोई पुरुष दीन है और दीन जातिवाला होता है। २. दीन और अदीनजाति — कोई पुरुष दीन होकर भी दीन जातिवाला नही होता हैं । ३. अदीन और दीनजाति— कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन जातिवाला होता है। ४. अदीन और अदीनजाति— कोई पुरुष न दीन है और न दीनजातिवाला होता है' (२०५) । संस्कृत टीकाकार ने अथवा लिखकर 'दीणजाति' पद का दूसरा संस्कृत रूप 'दीनयाची' लिखा है जिसके अनुसार दीनतापूर्वक याचना करनेवाला पुरुष होता है। तीसरा संस्कृतरूप 'दीनयायी' लिखा है, जिसका अर्थ दीनता को प्राप्त होने वाला पुरुष होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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