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________________ चतुर्थ स्थान–प्रथम उद्देश २४१ अद्धाकाले। काल चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. प्रमाणकाल- समय, आवलिका, यावत् सागरोपम का विभाग रूप काल । २. यथायुनिवृत्तिकाल- आयुष्य के अनुसार नरक आदि में रहने का काल। ३. मरण-काल— मृत्यु का समय (जीवन का अन्त-काल)। ४. अद्धाकाल— सूर्य के परिभ्रमण से ज्ञात होने वाला काल (१३४) । पुद्गल-परिणाम-सूत्र १३५- चउब्विहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा—वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणाम। पुद्गल का परिणाम चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. वर्ण-परिणाम- श्वेत, रक्त आदि रूपों का परिवर्तन। २. गन्ध-परिणाम–सुगन्ध-दुर्गन्ध रूप गन्ध का परिवर्तन । ३. रस-परिणाम- आम्ल, मधुर आदि रसों का परिवर्तन। ४. स्पर्श-परिणाम- स्निग्ध, रूक्ष आदि स्पर्शों का परिवर्तन (१३५)। चातुर्याम-परिणाम-सूत्र १३६-भरहेरवएसुणं वासेसु पुरिम-पच्छिम-वजा मज्झिमगा बावीसं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवेंति, तं जहा सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, एवं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। __ भरत और ऐरवत क्षेत्र में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर को छोड़कर मध्यवर्ती बाईस अर्हन्त भगवन्त चातुर्याम धर्म का उपदेश देते हैं। जैसे १. सर्व प्राणातिपात (हिंसा-कर्म) से विरमण । २. सर्व मृषावाद (असत्य-भाषण) से विरमण। ३. सर्व अदत्तादान (चौर-कर्म) से विरमण । ४. सर्व बाह्य (वस्तुओं के) आदान से विरमण (१३६)। १३७- सव्वेसु णं महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउजामं धम्मं पण्णवयंति, तं जहा-सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, जाव [सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं], सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। सभी महाविदेह क्षेत्रों में अर्हन्त भगवन्त चातुर्याम धर्म का उपदेश देते हैं। जैसे१. सर्व प्राणातिपात से विरमण । २. सर्व मृषावाद से विरमण। ३. सर्व अदत्तादान से विरमण। ४. सर्व बाह्य-आदान से विरमण (१३७)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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