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________________ चतुर्थ स्थान प्रथम उद्देश २३५ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष सूत्रादि का व्याख्यान करता है, किन्तु अन्य से व्याख्यान करवाता नहीं है। २. कोई पुरुष व्याख्यान करवाता है, किन्तु स्वयं व्याख्यान करता नहीं है। ३. कोई पुरुष व्याख्यान करता भी है और अन्य से व्याख्यान करवाता भी है। ४. कोई पुरुष न स्वयं व्याख्यान करता है और न अन्य से व्याख्यान करवाता है (११९)। १२०- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुत्तधरे णाममेगे णो अत्थधरे, अत्थधरे णाममेगे णो सुत्तधरे, एगे सुत्तधरे वि अत्थधरे वि, एगे णो सुत्तधरे णो अत्थधरे। __ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. कोई पुरुष सूत्रधर (सूत्र का ज्ञाता) होता है, किन्तु अर्थधर (अर्थ का ज्ञाता) नहीं होता। २. कोई पुरुष अर्थधर होता है, किन्तु सूत्रधर नहीं होता। ३. कोई पुरुष सूत्रधर भी होता है और अर्थधर भी होता है। ४. कोई पुरुष न सूत्रधर होता है और न अर्थधर होता है (१२०)। लोकपाल-सूत्र · १२१– चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररणो चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा—सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। असुरकुमार-राज.असुरेन्द्र चमर के चार लोकपाल कहे गये हैं। जैसे१. सोम, २. यम, ३. वरुण, ४. वैश्रवण (१२१)। १२२- एवं बलिस्सविसोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। धरणस्स कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले। भूयाणंदस्स-कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले। वेणुदेवस्स-चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। वेणुदालिस्स-चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे। हरिकंतस्स-पभे, सुप्पभे, पभकंते, सुप्पभकते। हरिस्सहस्स—पभे, सुप्पभे, सुप्पभकंते, पभकंते। अग्गिसिहस्स–तेऊ, तेउसिहे, तेउकंते, तेउप्पभे। अग्गिमाणवस्स तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पभे, तेउकंते। पुण्णस्स-रूवे, रूवंसे, रूवकंते, रूवप्पभे। विसिट्ठस्स–रूवे, रूवंसे, रूवप्पभे, रूवकंते। जलकंतस्स–जले, जलरते, जलकंते, जलप्पभे। जलप्पहस्स–जले, जलरते, जलप्पहे, जलकंते। अमितगतिस्स—तुरियगती, खिप्पगती, सीहगती, सीहविक्कमगती। अमितवाहणस्स-तुरियगती, खिप्पगती, सीहविक्कमगती, सीहगती। वेलंबस्स काले, महाकाले, अंजणे, रिटे। पभंजणस्स काले, महाकाले, रिटे, अंजणे। घोसस्स—आवत्ते, वियावत्ते, णंदियावत्ते, महाणंदियावत्ते। महाघोसस्स—आवत्ते, वियावत्ते, महाणंदियावत्ते, णंदियावत्ते। सक्कस्स–सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। ईसाणस्स–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। एवं–एगंतरिता जाव अच्चुतस्स। इसी प्रकार बलि आदि के भी चार-चार लोकपाल कहे गये हैं। जैसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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