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________________ २१५ चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश ४. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि दृष्टि वाला होता है (५१)। ५२ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुई णाम एगे सुइसीलाचारे, सुई णाम एगे असुइसीलाचारे, असुई णामं एगे सुइसीलाचारे, असुई णामं एगे असुइसीलाचारे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि शील-आचार वाला होता है। २. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि शील-आचार वाला होता है। ३. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि शील-आचार वाला होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि शील-आचार वाला होता है (५२)। ५३– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुई णामं एगे सुइववहारे, सुई णाम एगे असुइववहारे, असुई णामं एगे सुइववहारे, असुई णामं एगे असुइववहारे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि व्यवहार वाला होता है। २. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि व्यवहार वाला होता है। ३. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि व्यवहार वाला होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि व्यवहार वाला होता है (५३)। ५४– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुइपरक्कमे, सुई णामं एगे असुइपरक्कमे, असुई णाम एगे सुइपरक्कमे, असुई णामं एगे असुइपरक्कमे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि पराक्रम वाला होता है। २. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि पराक्रम वाला होता है। ३. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि पराक्रम वाला होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि पराक्रम वाला होता है (५४)। कोरक-सूत्र ५५- चत्तारि कोरवा पण्णत्ता, तं जहा—अंबपलंबकोरवे, तालपलंबकोरवे, वल्लिपलंबकोरवे, मेंढविसाणकोरवे। एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अंबपलबकोरवसमाणे, तालपलबकोरवसमाणे, वल्लिपलंबकोरवसमाणे, मेंढविसाणकोरवसमाणे। कोरक (कलिका) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. आम्रप्रलम्बकोरक- आम के फल की कलिका। २. तालप्रलम्ब कोरक-ताड़ के फल की कलिका।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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