SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ स्थानाङ्गसूत्रम् असच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे सच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे असच्चसीलाचारे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष सत्य और सत्य शील-आचार वाला होता है। २. कोई पुरुष सत्य, किन्तु असत्य शील-आचार वाला होता है। ३. कोई पुरुष असत्य, किन्तु सत्य शील-आचार वाला होता है। ४. कोई पुरुष असत्य और असत्य शील-आचार वाला होता है (४२)। ४३- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सच्चे णामं एगे सच्चववहारे, सच्चे णामं एगे असच्चववहारे, असच्चे णामं एगे सच्चववहारे, असच्चे णाम एगे असच्चववहारे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष सत्य और सत्य व्यवहार वाला होता है। २. कोई पुरुष सत्य, किन्तु असत्य व्यवहार वाला होता है। ३. कोई पुरुष असत्य, किन्तु सत्य व्यवहार वाला होता है। ४. कोई पुरुष असत्य और असत्य व्यवहार वाला होता है (४३)। ४४- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सच्चे णामं एगे सच्चपरक्कमे, सच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे, असच्चे णाम एगे सच्चपरक्कमे, असच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष सत्य और सत्य पराक्रम वाला होता है। २. कोई पुरुष सत्य, किन्तु असत्य पराक्रम वाला होता है। ३. कोई पुरुष असत्य, किन्तु सत्य पराक्रम वाला होता है। ४. कोई पुरुष असत्य और असत्य पराक्रम वाला होता है (४४)। शुचि-अशुचि-सूत्र __ ४५- चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुई, सुई णाम एगे असुई, चउभंगो ४।[असुई णामं एगे सुई, असुई णाम एगे असुई। ____ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुई, चउभंगो। एवं जहेव सुद्धे णं वत्थेणं भणितं तहेव सुईणा जाव परक्कमे। [सुई णाम एगे असुई, असुई णाम एगे सुई, असुई णाम एगे असुई। वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि (स्वच्छ) और परिष्कार-सफाई से शुचि होता है। २. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि, किन्तु अपरिष्कार-सफाई न होने से अशुचि होता है। ३. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि, किन्तु परिष्कार से शुचि होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy