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स्थानाङ्गसूत्रम्
अर्हन्त तीन प्रकार के कहे गये हैं—अवधिज्ञानी अर्हन्त, मनःपर्यवज्ञानी अर्हन्त और केवलज्ञानी अर्हन्त (५१४)। लेश्या-सूत्र ___ ५१५- तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ५१६– तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। ५१७ - [तओ लेसाओ- दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ, अमणुण्णाओ, अविसुद्धाओ, अप्पसत्थओ, सीतलुक्खाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ५१८- तओ लेसाओसोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ, मणुण्णाओ, विसुद्धाओ, पसत्थाओ, णिधुण्हाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा।]
तीन लेश्याएं दुरभि गंध (दुर्गन्ध) वाली कही गई हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (५१५)। तीन लेश्यायें सुरभिगंध (सुगन्ध) वाली कही गई हैं—तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या (५१६)। (तीन लेश्यायें दुर्गतिगामिनी, संक्लिष्ट, अमनोज्ञ, अविशुद्ध, अप्रशस्त और शीतरूक्ष कही गई हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (५१७)। तीन लेश्याएं सुगतिगामिनी असंक्लिष्ट, मनोज्ञ, विशुद्ध, प्रशस्त और स्निग्ध-उष्ण कही गई हैं—तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या (५१८)। मरण-सूत्र
५१९– तिविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा—बालमरणे, पंडियमरणे, बालपंडियमरणे। ५२०बालमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—ठितलेस्से, संकिलिट्ठलेस्से, पजवजातलेस्से। ५२१- पंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—ठितलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से, पजवजातलेस्से। ५२२- बालपंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते. तं जहा ठितलेस्से. असंकिलिलेस्से, अपज्जवजातलेस्से।
मरण तीन प्रकार का कहा गया है—बाल-मरण (असंयमी का मरण), पंडित-मरण (संयमी का मरण) और बाल-पंडितमरण (संयमासंयमी-श्रावक का मरण) (५१९)। बाल-मरण तीन प्रकार का कहा गया है—स्थितिलेश्य (स्थिर संक्लिष्ट लेश्या वाला), संक्लिष्टलेश्य (संक्लेशवृद्धि से युक्त लेश्या वाला) और पर्यवजातलेश्य (विशुद्धि की वृद्धि से युक्त लेश्या वाला) (५२०)। पंडित-मरण तीन प्रकार का कहा गया है—स्थितलेश्य (स्थिर विशुद्ध लेश्या वाला) असंक्लिष्टलेश्य (संक्लेश से रहित लेश्या वाला) और पर्यवजातलेश्य (प्रवर्धमान विशुद्ध लेश्या वाला) (५२१)। बाल-पंडितमरण तीन प्रकार का कहा गया है—स्थितलेश्य, असंक्लिष्टलेश्य और अपर्यवजातलेश्य (हानि वृद्धि से रहित लेश्या वाला) (५२२)।
विवेचन- मरण के तीन भेदों में पहला बालमरण है। बाल का अर्थ है अज्ञानी, असंयत या मिथ्यादृष्टि जीव। उसके मरण को बाल-मरण कहते हैं। उसके तीन प्रकारों में पहला भेद स्थितलेश्य है। जब जीव की लेश्या न विशुद्धि को प्राप्त हो और न संक्लेश को प्राप्त हो रही हो, ऐसी स्थितलेश्या वाली दशा को स्थितलेश्य कहते हैं। यह स्थितलेश्य मरण तब संभव है, जबकि कृष्णादि लेश्या वाला जीव कृष्णादि लेश्या वाले नरक में उत्पन्न होता है। बाल-मरण का दूसरा भेदं संक्लिष्टलेश्यमरण है।