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तृतीय स्थान • चतुर्थ उद्देश
४६५— तिहिं ठाणेहिं केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा, तं जहा—
१. अधे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते गुप्पेज्जा । तए णं से घणवाते गुबिते समा घणोदहिमेएज्जा । तए णं से घणोदही एइए समाणे केवलकप्पं पुढविं चालेज्जा ।
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२. देवे वा महिड्डिए जाव महेसक्खे तहारूवस्स समणस्स माहणस्स वा इड्डि जुतिं जसं बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमं उवदंसेमाणे केवलकप्पं पुढविं चालेज्जा ।
३. देवासुरसंगामंसि वा वट्टमाणंसि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा ।
इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं केवलकप्पा पुढवी चलेजा।
तीन कारणों से केवल-कल्पा- सम्पूर्ण या प्रायः सम्पूर्ण पृथ्वी चलित होती है—
१. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अधोभाग में घनवात क्षोभ को प्राप्त होता है । वह घनवात क्षुब्ध होता हुआ घनोदधिवात को क्षोभित करता है । तत्पश्चात् वह धनोदधिवात क्षोभित होता हुआ केवलकप्पा (सारी) पृथ्वी को चलायमान कर देता है ।
२. कोई महर्धिक, महाद्युति, महाबल तथा महानुभाव महेश नामक देव तथारूप श्रमण माहन को अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम दिखाता हुआ सम्पूर्ण पृथ्वी को चलायमान कर देता है ।
३. देवों और असुरों के परस्पर संग्राम होने पर सम्पूर्ण पृथ्वी चलित हो जाती है।
इन तीन कारणों से सारी पृथ्वी चलित होती है (४६५)।
देवकिल्विषिक-सूत्र
४६६ –— तिविधा देवकिब्बिसिया पण्णत्ता, तं जहा — तिपलिओवमट्ठितीया, तिसागरोवमट्टितीया तेरससागरोवमट्ठितीया।
१. कहि णं भंते! तिपलिओवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ?
उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठि सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्टितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ।
२. कहि णं भंते! तिसागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ?
उपिं सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, हेट्ठि सणंकुमार- माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्टितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ।
३. कहि णं भंते! तेरससागरोवमट्टितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ?
उप्पिं बंभलोगस्स कप्पस्स, हेट्ठि लंतगे कप्पे, एत्थ णं तेरससागरोवमट्ठितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ।
किल्विषिक देव तीन प्रकार के कहे गये हैं—–तीन पल्योपम की स्थितिवाले, तीन सागरोपम की स्थितिवाले और तेरह सागरोपम की स्थितिवाले ।