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________________ तृतीय स्थान चतुर्थ उद्देश प्रतिमा- सूत्र ४१९ – पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा— अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा । प्रतिमा - प्रतिपन्न (मासिकी आदि प्रतिमाओं को स्वीकार करने वाले) अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों ( आवासों) का प्रतिलेखन (निवास के लिए देखना) करना कल्पता है । १. आगमन - गृह — यात्रियों के आकर ठहरने का स्थान, प्रपा (प्याऊ), धर्मशाला, सराय आदि । २. विवृत- गृह — अनाच्छादित (ऊपर से खुला ) या एक-दो ओर से खुला माला-रहित - घर, वाड़ा आदि । ३. वृक्षमूल - गृह — वृक्ष का अधो भाग (४१९) । -४२० - [पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, तं जहा— अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा । [ प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों की अनुज्ञा (उनके स्वामियों की आज्ञा या स्वीकृति) लेनी चाहिए— १. आगमन - गृह में ठहरने के लिए। २. अथवा विवृत- गृह में ठहरने के लिए। ३. अथवा वृक्षमूल-गृह में ठहरने के लिए (४२०) । ४२१ – पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया उवाइणित्तए, तं जहा अहे आगमणiिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा ] । प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों में रहना कल्पता है में १. आगमन - गृह २. अथवा विवृत-गृह में। ३. अथवा वृक्षमूल - गृह में (४२१) ।] ४२२ –— पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं जहा पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव । प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों का प्रतिलेखन करना कल्पता है— १. पृथ्वीशिला — समतल भूमि या पाषाण शिला ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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