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________________ तृतीय स्थान प्रथम उद्देश १११ छप्पि समाओ भाणियव्वाओ, जाव दूसमदूसमा [तिविहा सुसम-सुसमा, तिविहा सुसमा, तिविहा सुसम-दूसमा, तिविहा दूसम-सुसमा, तिविहा दूसमा, तिविहा दूसम-दूसमा पण्णत्ता, तं जहा—उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा]। ९१–तिविहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा—उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा। ९२- एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ [तिविहा दुस्सम-दुस्समा, तिविहा दुस्समा, तिविहा दुस्समसुसमा, तिविहा सुसम-दुस्समा, तिविहा सुसमा, तिविहा सुसम-सुसमा पण्णत्ता, तं जहा—उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा]। अवसर्पिणी तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (८९)। इसी प्रकार दु:षम दुःषमा तक छहों आरा जानना चाहिए, यथा [सुषमसुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । सुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। सुषमा-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । दुःषम-सुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । दुःषम-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (९०)।] उत्सर्पिणी तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (९१)। इसी प्रकार छहों आरा जानना चाहिए यथा—[दुःषम-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। दुःषम-सुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । सुषम-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। सुषमा तीन प्रकार की कही गई है उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। सुषम सुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (९२)।] अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-सूत्र - ९३– तिहिं ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेजा, तं जहा—आहारिजमाणे वा पोग्गले चलेजा, विकुव्वमाणे वा पोग्गले चलेजा, ठाणाओ वा ठाणं संकामिजमाणे पोग्गले चलेजा। __ अच्छिन्न पुद्गल (स्कन्ध के साथ संलग्न पुद्गल परमाणु) तीन कारणों से चलित होता है—जीवों के द्वारा आकृष्ट होने पर चलित होता है, विक्रियमाण (विक्रियावशवर्ती) होने पर चलित होता है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर संक्रमित होने पर (हाथ आदि द्वारा हटाने पर) चलित होता है। उपधि-सूत्र ९४– तिविहे उवधी पण्णत्ते, तं जहा कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवही। एवं असुरकुमाराणं भाणियव्वं। एवं एगिदियणेरइयवजं जाव वेमाणियाणं। अहवा–तिविहे उवधी पण्णत्ते, तं जहा सचित्ते, अचित्ते, मीसए। एवं—णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। उपधि तीन प्रकार की कही गई है—कर्म-उपधि, शरीर-उपधि और वस्त्र-पात्र आदि बाह्यउपधि । यह तीनों प्रकार की उपधि एकेन्द्रियों और नारकों को छोड़कर असुरकुमारों से लेकर वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में कहना
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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