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________________ तृतीय स्थान सार : संक्षेप ९५ उपधि, आत्मरक्ष, विकटदत्ति, विसम्भोग, वचन, मन और वृष्टि पद के द्वारा तत् तत् विषयक तीन-तीन प्रकारों का निरूपण किया गया है। यह भी बताया गया है कि किन तीन कारणों से देव वहाँ जन्म लेने के पश्चात् मध्यलोक में अपने स्वजनों के पास चाहते हुए भी नहीं आता ? देवमनःस्थिति पद में देवों की मानसिक स्थिति का बहुत सुन्दर चित्रण है । विमान, वृष्टि और सुगति-दुर्गति पद में उससे संबद्ध तीन-तीन विषयों का वर्णन है । तदनन्तर तप:पावक, पिण्डैषणा, अवमोदरिका, निर्ग्रन्थचर्या, शल्य, तेजोलेश्या, भिक्षुप्रतिमा, कर्मभूमि, दर्शन, प्रयोग, व्यवसाय, अर्थयोनि, पुद्गल, नरक, मिथ्यात्व, धर्म और उपक्रम, तीन-तीन प्रकारों का निरूपण किया गया है। अन्तिम त्रिवर्ग पद में तीन प्रकार की कथाओं और विनिश्चयों को बताकर गौतम द्वारा पूछे गये और भगवान् महावीर द्वारा दिये गये साधु- पर्युपासना सम्बन्धी प्रश्नोत्तरों का बहुत सुन्दर निरूपण किया गया है। चतुर्थ उद्देशका सार इस उद्देश में सर्वप्रथम प्रतिमापद के द्वारा प्रतिमाधारी अनगार के लिए तीन-तीन कर्तव्यों का विवेचन किया गया है। पुन: काल, वचन, प्रज्ञापना, उपघात- विशोधि, आराधना, संक्लेश- असंक्लेश और अतिक्रमादि पदों के द्वारा तत्संबद्ध तीन-तीन विषयों का वर्णन किया गया है। तदनन्तर प्रायश्चित्त, अकर्मभूमि, जम्बूद्वीपस्थ वर्ष (क्षेत्र) वर्षधर पर्वत, महाद्रह, महानदी आदि का वर्णन कर धातकीखण्ड और पुष्करवर द्वीप सम्बन्धी क्षेत्रादि के जानने की सूचना करते हुए भूकम्प पद के द्वारा भूकम्प होने के तीन कारणों का निरूपण किया गया है। तत्पश्चात् देवकिल्विषिक, देवस्थिति, प्रायश्चित्त और प्रव्रज्यादि - अयोग्य तीन प्रकार के व्यक्तियों का वर्णन कर वाचनीय-अवाचनीय और दुःसंज्ञाप्य - सुसंज्ञाप्य व्यक्तियों का निरूपण किया गया है । पुनः माण्डलिक पर्वत, महामहत् कल्पस्थिति और शरीर-पदों के द्वारा तीन-तीन विषयों का वर्णन कर प्रत्यनीक पद में तीन प्रकार के प्रतिकूल आचरणं करने वालों का सुन्दर चित्रण किया गया है। पुन: अंग, मनोरथ, पुद्गल - प्रतिघात, चक्षु, अभिसमागम, ऋद्धि, गौरव, करण, स्वाख्यातधर्म ज्ञ-अज्ञ, अन्त, जिन, लेश्या और मरण पदों के द्वारा वर्ण्य विषयों का वर्णन कर श्रद्धानी की विजय और अश्रद्धानी के पराभव के ' तीन-तीन कारणों का निरूपण किया गया है। अन्त में पृथ्वीवलय, विग्रहगति, क्षीणमोह, नक्षत्र, तीर्थंकर, ग्रैवेयकविमान, पापकर्म और पुद्गल पदों के द्वारा तत्तद्विषयक विषयों का निरूपण किया गया है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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