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द्वितीय स्थान–चतुर्थ उद्देश ४३६- धम्मियाराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुयधम्माराहणा चेव, चरित्तधम्माराहणा चेव। ४३७- केवलिआराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–अंतकिरिया चेव, कप्पविमाणोववत्तिया चेव।
आराधना दो प्रकार की कही गई है—धार्मिक आराधना (धार्मिक श्रावक-साधु जनों के द्वारा जी जाने वाली आराधना) और कैवलिकी आराधना (केवलियों के द्वारा की जाने वाली आराधना) (४३५)। धार्मिकी आराधना दो प्रकार की कही गई है-श्रुतधर्म की आराधना और चारित्रधर्म की आराधना (४३६)। कैवलिकी आराधना दो प्रकार की कही गई है—अन्तक्रियारूपा और कल्पविमानोपपत्तिका (४३७)। कल्पविमानोपपत्तिका आराधना श्रुतकेवली आदि की ही होती है, केवलज्ञानी केवली की नहीं। केवलज्ञानी शैलेशीकरणरूप अन्तक्रिया आराधना ही करते हैं। तीर्थंकर-वर्ण-पद
४३८- दो तित्थगरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा—मुणिसुव्वए चेव, अरिट्ठणेमी चेव। ४३९-दो तित्थगरा पियंगुसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा–मल्ली चेव, पासे चेव। ४४०दो तित्थगरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-पउमप्पहे चेव, वासुपुजे चेव। ४४१- दो तित्थगरा चंदगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा—चंदप्पभे चेव, पुष्फदंते चेव।
दो तीर्थंकर नीलकमल के समान नीलवर्ण वाले कहे गये हैं—मुनिसुव्रत और अरिष्टनेमि (४३८)। दो तीर्थंकर प्रियंगु (कांगनी) के समान श्यामवर्णवाले कहे गये हैं मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ (४३९)। दो तीर्थंकर पद्म के समान लाल गौरवर्ण वाले कहे गये हैं—पद्मप्रभ और वासुपूज्य (४४०)। दो तीर्थंकर चन्द्र के समान श्वेत गौरवर्ण वाले कहे गये हैं—चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त (४४१)। पूर्ववस्तु-पद
४४२- सच्चप्पवायपुव्वस्स णं दुवे वत्थू पण्णत्ता।
सत्यप्रवाद पूर्व के दो वस्तु (महाधिकार) कहे गये हैं (४४२)। नक्षत्र-पद
४४३- पुव्वाभद्दवयाणक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते। ४४४- उत्तराभद्दवयाणक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते। ४४५-पुव्वफग्गुणीणक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते। ४४६- उत्तराफग्गुणीणक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दो तारे कहे गये हैं (४४३)। उत्तराभाद्रपद के दो तारे कहे गये हैं (४४४)। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के दो तारे कहे गये हैं (४४५) । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दो तारे कहे गये हैं (४४६)। समुद्र-पद
४४७– अंतो त्तं मणुस्सखेत्तस्स दो समुद्दा पण्णत्ता, तं जहा लवणे चेव, कालोदे चेव। मनुष्य क्षेत्र के भीतर दो समुद्र कहे गये हैं लवणोद और कालोद (४४७)।